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________________ आशीर्वाद प्राप्ति नकुल वीच ही मे बोल उठा- 'महाराज! आप हमारे बडे भाई है, आप की आज्ञा से ही हम रण भूमि मे आये हैं आपके ही आदेश पर इतनी विशाल सेना सगठित की गई है। आप हमे छोड कर विना बताए शत्रुनो की ओर इस प्रकार क्यो जा रहे सहदेव भी चुप न रह मका-"राजन । क्षमा कीजिये। हमे यह तो बत'ते जाईये कि आखिर आप ने निश्चय क्या किया महाराज कहाँजा हुए कहा-आपर उठ रहे भीमसेन फिर बोला--"आप शत्रो की ओर अपने भाईओं को विना कुछ बताये चले जाये यह अच्छी बात नही है।" तभी श्री कृष्ण के अधरो पर मुस्कान खेल गई। क्यो कि उन्होने देख लिया कि महाराज युधिष्ठिर के पग किस ओर उठ रहे हैं उन्होंने चारो को सम्बोधिक करते हुए कहा--आप घबरायें नही। मुझ से पूछे कि महाराज कहां जा रहे है ? . चारो पाण्डवो के नेत्रो मे प्रश्नवाचक चिन्ह झूल गया। श्री कृष्ण बोले-"महाराज युधिष्ठिर धर्मराज है ना। वे गुरुदेव द्रोणाचार्य कृपाचार्य तथा भीष्म पितामह आदि से आज्ञा लिए विना युद्ध प्रारम्भ नही करेंगे। उन्हीं से प्राज्ञा लेने जा रहे है आप लोग सन्तुष्ट रहें। आप यह भी विश्वास रक्खे कि जो अपने गुरुपों तथा वद्धजनो की आज्ञा तथा अनमति से, उनका अभिवादन करने के उपरान्त युद्ध करता है उसकी विजय असदिग्ध हो जाती है शास्त्र यही कहते है ।" । इधर श्री कृष्ण तो उन को समझा रहे थे उधर महाराज युधिष्ठिर को इस दशा मे देख कर कौरवो की सेना मे बडा कोलाहल हाने लगा। कुछ लोग दा रह कर चुप चाप खडे रह गए। दृयोधन के कुछ संनिको ने महाराज यधिष्ठिर को इस प्रकार प्राते पास कर पापम मे कहना प्रारम्भ कर दिया-"यो हो! यही पुलपुलड्न, युधिष्ठिर है। देखो, अव इसे कौरवा की शक्ति का
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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