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जैन महाभारत
अर्जुन आवेश मे पाकर युद्ध के लिए तैयार होगया था और श्री कृष्ण महाभारत में इसे अपनी पहली विजय समझ कर प्रफुल्लित थे, वास्तव में मानना ही पड़ेगा कि उस समय जव कि महाभारत का मुल्य योद्धा, अर्जुन ही उदासीन था और उस युद्ध को 'पाप' समझ वैठा था, श्री कृष्ण न होते तो कदाचित सेनाए सजी ही रह जाती, अथवा युद्ध का परिणाम ही दूसरा होता 1. जो भी हो,' श्री कृष्ण का उस समय का उपदेश काम कर गया। अव जब कि अर्जुन युद्ध के लिए तैयार था। अनायोस ही युधिष्ठिर ने कदच उतार दिया, शस्त्र रथ मे रक्खे और हाथ जोड कर तेजी से पूर्व की ओर, जहा शत्रु सेना खडी थी, पैदल ही चल पडे । महाराज युधिष्ठिर के इस प्रकार अनायास ही शत्र सेना की ओर विना अस्त्र गस्त्र के रण वाणो के बिना पैदल चल देने पर पाण्डुओं की सेना में खल- वली मच गई। सभी हत प्रभ होकर उस विचित्र वात को देखने लगे।
महाराज युधिष्ठिर को इस प्रकार जाते देख कर अर्जुन भी ' रथ से कूद पड़े और उन के साथ ही भीम, नकुल और सहदेव भी रथ से नीचे आ गए। श्री कृष्ण तथा अन्य प्रमुख नरेश भी अपनी अपनी सवारियो से नीचे उतर आये और यह सारे लोग महाराज युधिष्ठिर के पीछे पीछे चल पडे। किसी की समझ मे ही न पाता था कि यह हो क्या रहा है ।
__ अर्जुन ते पूछा-"महाराज! आप का क्या विचार है। आप अचानक रण वाणा उतार कर नि शस्त्र हो शत्रु सेना की ओर क्यो जा रहे हैं ?"
"............"महाराज युधिष्ठिर कुछ न बोले। वे चलते
रहे ।
___भीमसेन से न रहा गया, पूछ बैठा-"राजन | शत्रु पक्ष को सेना कवच धारण किए, शस्त्रो से लैस युद्ध के लिए तैयार खड़ी है और आप इस प्रकार हाथ जोडे उघर जा रहे हैं। आखिर आपके दिल में क्या आगई ? कही आप, ......"