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कृष्णोपदेश -
मे रखने को उत्सुक हो । हाँ, मुझे याद आया कि तुम एक वर्ष I तक विराट नरेश के रनिवास मे स्त्रियो को नाच गाना सिखा चुके हो । अब तुम्हारे हाथो मे गाण्डीव उठाने की क्षमता कहा, - तुम्हे तो चूडिथा चाहिए । तुम द्रौपदी के खुले हुए केशो को भूल गए । तुम दुःशासन द्वारा भरी सभा मे द्रौपदी को वस्त्र हीन करने के नोचता पूर्ण प्रयास को भूल गए । तुम्हे भीम को विष देकर मार डालने का षड्यन्त्र याद नही रहा । और तुम्हे यह भी याद नही रहा कि तुम्हारे इन स्वजनो ने ही तुम्हें, और तुम्हारी माता व भाईयो को लाख के महल में जला डालने का षडयन्त्र रचा था । तुम्हें यह भी याद नही रहा कि इसी तुम्हारे अन्यायी भाई दुर्योधन ने जिसका तुम्हें मोह सता रहा है, महाराज युधिष्ठिरं को फसा कर जुए मे हराया था और तुम्हे बन बन भटकने को निकाल बाहर किया था। तुम कदाचित यह भी भूल गए कि जब मैं तुम्हारा दूत बन कर गया था, इन्ही तुम्हारे स्वजनों ने मुझे मार डालने की योजना बनाई थी। तुम कदाचित यह भी भूल गए हो कि तुम्हारे बाहुबल के ग्रासरे पर सती द्रौपदी ने दुष्टो से बदला लेने की प्रतीज्ञा की थी। हा, तुम्हे यह सारी बाते क्यों याद रहने वाली है तुम तो रण क्षेत्र से भाग जाने के लिए उपयुक्त बहाने खोज रहे हो। पार्थ ! यदि यह वात नही तो बताओ कि जो वाते तुम्हे इस समय सूझ रही है, रण भूमि मे आने से पहले तुम्हे क्यों न सूझी। जहा तक तुम्हारे गुरुदेव तथा भीष्म जी से युद्ध का प्रश्न है, यदि इनकी दृष्टि मे भी तुम्हारा इतना ही मान होता जितना होना चाहिए था तो फिर बतानो वे दुष्ट दुर्योधन के साथ क्यों जाते ? नही, नही! तुम कायरता दिखा रहे हो, तुम पाण्डु नरेश के नाम को कलकित कर रहे हो तुम कुन्ती माता की कोख को
बट्टा लगा रहे हो ।"
हो
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श्री कृष्ण के शब्दो के प्रभाव से क्रुद्ध सिंह की नाई अर्जुन गडाई लेकर उठा । उसने गाण्डीव सम्भाला और कड़क कर बोला ---"श्री कृष्ण जी ! आप मुझे कायर कहकर क्रुद्ध न कीजिए । मुझे अपनी शक्ति पर पूर्ण विश्वास है। कौरव चाहे कितनी ही विशाल सेना क्यो न ले आयें, मैं अपने गाण्डीव के द्वारा उन्हे रक्त
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