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जैन महाभारत
था? तुम दोनो पक्ष वाले तो आपस मे स्वजन होने की बात लेकर आज एक दूसरे के हुए जाते हो, पर हम लोगो को बीच मे डाल कर क्यो व्यर्थ ही दुर्योधन का विरोधी बनवाया, क्यो' व्यर्थ ही दुर्योधन को हमारा शत्रु बनवाया? हम ने आखिर-तुम्हारा क्या बिगाडा था ?
__नही, नहो, हे गोबिन्द ! ऐसी कोई बात नही, आप गलत समझे मेरा मतलब........."
अर्जुन की बात को बीच मे ही काट कर श्री कृष्ण बोल उठे-"नही पार्थ ! बात बनाने का प्रयत्न न करो। मैं अव तुम्हारी वास्तविकता को समझा। तुम उतने वीर नहीं हो जितना मैं समझता हू। तुम कौरवो की सेना देख कर घबरा गए हो और स्वजन का बहाना बनाकर युद्ध टालना चाहते हो । वरना यदि स्वजन का ही सवाल था तो राजकुमार उत्तर को साथ लेकर तुम अपने स्वजनो के साथ. क्यो लडे थे। तुम्हे उस समय कौरव अपने भाई क्यो नही लगे? क्यो न तुम ने यह. कह कर उत्तर के साथ युद्ध मे जाने से इंकार कर दिया था कि गौए चुरा कर ले जाने वाले मेरे भाई हैं, मैं उन के विरुद्ध वाण न उठाऊ गा। और यदि यह तुम्हारे स्वजन ही थे तो क्यो न तुम ने उनकी दासता स्वीकार कर के राज्य के झगडे को समाप्त कर लिया? क्यो हम सभी को युद्ध मे घसीट लाये ?"
“महाराज आप मेरी बात का गलत अर्थ न निकालिए मेरे सामने तो सवाल है रक्त पात से बचने का।"-अर्जुन ने कहा।
"तो क्या तुम कह सकते हो कि तुम ने कभी भी रक्त पात नही किया ? -श्री कृष्ण ने उवलते हए प्रश्न किया। तुम ने कितने ही युद्ध लडे । क्या उन मे वीर सैनिको का वध नही हुआ तुम्हारा सारा जीवन युद्धो से भरा पडा है। तुम्हारे अपने हाथो से कितने ही योद्धा धाराशायी हुए हैं। तुम्हारे वाणो से कितनों की ही हत्याए हुई है। यदि वास्तव मे तुम विरोधी हिसा तक से बचना चाहते थे तो उस समय जब तुम पुन युद्ध में उतरा करते थे, तुम्हारा ध्यान इस ओर क्यो नही गया? नहीं, नही. मैं समझ गया कि तुम अभी तक अपने को नपुसक की दशा