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कृष्णोपदेश
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जाऊ जो उन्हो ने किया है ? अर्जुन ने कहा-पाप यदि बडो द्वारा किया जाता हो तो भी वह धर्म तो नहीं हो जाता।" . 'ठीक है, परन्तु क्षत्रिय देश धर्म की रक्षा करता हुआ लडता है। क्षत्रियो के लिए धर्म युक्त युद्ध से बढ कर तो दूसरा कोई कल्याण कारी कर्तव्य नही है। यदि तुम इस अवसर पर कायरता और मोह के पचड़े मे फस जाओ तो विश्वास रक्खो कि आने वाली सन्ताने तुम पर थूकेगी। और स्वधर्म को होकर अपकीर्ति प्राप्त करोगे "श्री कृष्ण बोले।
अर्जुन ने पुन. प्रश्न किया-"तो क्या अधर्म से हो कीर्ति मिलती है।"
___"नही, कदापि नही,-श्री कृष्ण ने शका समाधान करते हुए कहा-तुम जिसे अधर्म समझ बैठे हो वह अधर्म तो है ही नहीं, वरन तुम्हारा कर्तव्य है जिस से तुम विमुख होना चाहते हो । धर्म क्या है पहले उसे समझो। धर्म तो आत्मा के स्वभाव को कहते हैं। कर्तव्य का दूसरा नाम धर्म है।
माणिणिहिज्जवीरिय अपनी वीरता को मत छपामो अन्याय करना तो पाप है किन्तु अन्याय सहन करना दूसरों पर अन्याय, होता हो तो उसे चुप चाप देखते रहना दोनो परिस्थितियो मे वलवीर्य अतराये कर्म का वधन होता है अतः शक्ति हो तो अन्याय का प्रतिकार करो यदि शक्ति न हा तो अन्यत्र प्रस्थान करो किन्त खड़े खड़े अन्याय का अवलोकन मत करो तथा शने शनैः शक्ति प्राप्त कर अन्याय को नष्ट करने का पूर्णत: सफल प्रयत्न करो। यदि तुम ने इस समय गाण्डीव न सम्भाला तो नोच द.शासन जैसो का दाव चल जायेगा और संमार मे प्राततइयों की बन आयेगी। फिर तो न्याय पर अन्याय की विजय के लिए रास्ता खुल जाएगा। यह युद्ध जो तुम करने वाले हो, केवल तम्हारे अपने हित मे ही नही है । इसका प्रभाव सारे मंसार पर पड़ने वाला है। और तुम र वार स्वजन की बात उठाते हो तो अपने शास्त्रो को उठा