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___कृष्णोपदेश
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इसी लिए आत्मार्थी महापुरुषो ने (ही) सर्वथा हिंसा का परित्याग किया है।
सो; अर्जुन ! तुम जो कि एक सद्गृहस्थी हो उन नियमो का पालन नहीं कर सकते जो महाव्रती मुनिगण के लिए बताए गए हैं । तुम्हे गृहस्थ मे रहना है तो भगवान के कथनानुसार केवल स्थूल हिंसा से ही बच सकते हो।"
। श्री कृष्ण के उपदेश को सुनकर अर्जुन ने कहा-"पर आखो देखे, पाप को करना तो भूल है। जब कि मैं जानता हूं कि मैं जो कुछ करने जा रहा है उससे भयकर हिंसा होनी है तो फिर जानबूझ कर पाप के गड्ढे मे क्यो गिरू?'
श्री कृष्ण वोले-"पार्थ ! अभी तक तुम्हारे मस्तिष्क पर भ्रान्ति का परदा पड़ा है। भगवान के द्वारा बताये गए श्रावक धर्म के नियमो का स्मनणे करो। यदि तुम जानबूझ कर हिंसा करना पाए समझते हो तो फिर मुनिव्रत धारण क्यो नही करते ?-अर्जुन
रसा चार प्रकारतो फिर मुनिव्रत यदि तुम जानताये गए श्रावक पर
(१) सकल्पी हिंसा-अर्थात् निरापराधी को जानबूझ कर
मारना सताना। (२) आरम्भी हिंसा-खाने पीने आदि में जो जीव हत्या
. होती है उसे आरम्भी हिंसा कहते है। (३) उद्योगी हिंसा-देश की उन्नति के लिए कृषि करने,
' । उद्योग धन्धो आदि मे जो हिसा होती
__ है उसे उद्योगी हिंसा कहते हैं। (४) विरोधी हिंसा-देश, सतीत्व, मान, मर्यादा, निपराधी
की रक्षा, न्याय, धर्म आदि ' की रक्षा करने के लिए आक्रमणकारी को अपराध करने से रोकने मे जो हिंसा होती है वह विरोधी हिंसा कहलाती