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________________ f कृष्णोपदेश श्रात्म परीक्षा का समय कुछ दूर है ।" १० Ti - A क्योंकि युद्ध प्रारम्भ होने से पूर्व, अभी एक बात और भी होनी है। वह है युद्ध के नियमो की रचना। ऐसे नियमो की जिन पर युद्ध की रीति-नीति श्राधारित होगी। उन दिनो की रीति के अनुसार दोनो ओर के सेना नायक मिले और समझ बूझकर सर्व सम्मति से कुछ नियम निश्चित किए । वे थे "" T 2 है -1 ३४१ प्रतिदिन सूर्यास्त के उपरान्ते युद्ध बन्द हो जायेगा ।" "युद्ध की समाप्ति के उपरान्त दोनो पक्ष के लोग आपस मे मिल : समाने वालों में ही टक्कर हो । अनुचित और अन्याय पूर्ण ढंग से कोई लंड नही सकताः । क 2 - }-- · 1. ki î * अस्त्रों का प्रहार से, घुड सवार घुड सवार से तथा सेना से दूर हट जाने वालों पर बाणो या न हो। रथी, रथी से हाथी सवार हाथी सवार सवार मे, और पैदल पैदल से, विमान- सवार विमान विकट गाडी विकट गाडी से ही लडे । शत्रु पर विश्वास करके जो लडना बन्द कर दे उस पर या डर कर हार मानने या सिर झुकाने वाले पर शस्त्र का प्रयोग नही होना चाहिए। दो योद्धा आपस मे युद्ध कर रहे हो तो, उन को सूचना दिए बिना, या. सावधान किए बिना, तीसरे को उन पर या किसी एक पर शस्त्र नहीं चलानी चाहिए। निशस्त्र असाबधान, पीठ दिखा कर भागने वाले या कवच से रहित को शस्त्र चला कर नही मारना चाहिए । शस्त्र पहुचाने या ढोने वालो, अनुचरो, भेरी बजाने वालो और शख फूकने वालो पर भी हथियार नहीं चलाया जायेगा । , 15 ' - 1 उपरोक्त नियमो को देख क्या कोई कह सकता है कि इन नियमो को मान कर लडने वाले कोई असम्य या अनुचित कार्य करने वाले लोग थे ? इन नियमो को बनाते समय वृद्ध ग्राचार्यो और धर्म राज युधिष्टर ने विशेष तौर पर अपने धर्म अपनी मर्यादा और अपने कर्तव्य को खण्डित न होने देने का प्रयत्न किया था । क्या आज के युग मे कोई भी युद्ध इतनी मानवीय कर किया जाता है। वास्तव में यह नियम चीख शर्तों को मान चीख कर कह ?
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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