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कुन्ती को कर्ण का वचन
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मुझे अपमानित किया गया था। उसने बिना किसी प्रकार का सौदा किए ही मुझे अपने राज्य का एक भाग दे दिया था। उसने सदा मेरा आदर किया । तुम जिसे नदी मे फैक पाई थी, उमे दुर्योधन ने कूड़े के ढेर से उठा कर सिहासन पर बैठाया । मैं उसका उपकार कभी नहीं भूल सकता . मैं भ्रात प्रेम के कारण जिन के साथ विश्वासघात नहीं कर सकता। मै क्षत्रिय हू और हू महा पराक्रमी राजा की सम्मान । मै अपने वचन को नहीं तोड सकता । मुझे क्षत्रिय रीति को तोड़ने के लिए न कहो।"-कणं ने उत्तर देते हुए कहा।
"दुर्योधन की मित्रता का कारण तुम्हारे प्रति उसका स्नेह नही । वरन वह तुम्हे अर्जुन को मारने के लिये अस्त्र बनाना चाहता है। बेटा ! तुम्हे शत्रु को चाल ममनना चाहिए।"-कुन्ती ने कहा।
___ "नही मा, मैं यह नही मान सकता। रण नो अाज हो रहा 6. है. पर मेरे प्रति स्नेह का प्रदर्शन उसने उम दिन किया था जब
किमी को यह भी पता नही था कि कौरव और पाण्डव एक साथ । न रह सके। उसने उन दिनो मेरा आदर किया था जिन दिनो
मेरे भाई पाण्डव मुझे सूत पुत्र कहकर मुझ मे घृणा किया करते थे। मै इस अवमेर पर अपने परम प्रिय का साथ नहीं छोड़ सकता मैं क्षत्रिय धर्म को कलकित नही करूगा।"-कर्ण ने जोर देकर कहा -
माता कुन्ती.ने बहुत समझाया पर कर्ण ने साफ कह दिया कि वह जिसे वचन दे चका उसी के साथ रहेगा। उसके निश्चय को कोई भी नहीं बदल सकता । विवश होकर कुन्ती ने कहा -"बेटा ।
यदि तुम पाण्डवो के पक्ष मे भी. नही पा सकते तो यह वचन तो 2) मुझे दे ही सकते हो कि पाण्डवों मे से किमी का वध भी तुम्हारे
हाथो नही होगा।" -
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"हा, ऐसा वचन दे सकता था परन्तु .......... ... "परन्तु क्या?" ' ' . .