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जैन महाभारत
करता रहा. रण मे तुम्हें मारने के लिए अपना अस्त्र प्रयोग करे अथवा तुम उसको मार डालो। मेरे लिए तुम सभी समान हो। तुम मेरे पुत्र ही नही. बल्कि मुझे तो माद्री की सन्तान भी अपनी ही सन्तान लगती है। मैं तुम छ से समान ही स्नेह रखती है।"
"नही, नही तुम नही जानती हो कि कर्ण को मार मकना अर्जुन के बस की बात नही। इस लिए तुम मेरे लिए भयभीत नही हो। यदि होती तो अवश्य ही पहले अपने लाडले अर्जुन से जाकर इस रहस्य को बताती। तुम मुझे बताने पाई हो तो इस लिए कि तुम पाण्डवो के भविष्य के प्रति सशकित हो।' कर्ण ने कहा।
"बेटा कर्ण । यदि ऐसा भी है तो मुझे तुम से तुम्हारे भाइयो के प्राणो की रक्षा, उन के लिए अभयदान लेने का अधिकार है। मैं तुम से विनती कर सकती हू कि तम दुष्ट दुर्योधन के लिए अपने भाइयो के प्राण न लो। तुम उसी महा पराक्रमी स्वर्गवामी पान्डु की सन्तान हो, जिसकी सन्तान को दुर्योधन ने राज्य च्युत करके दर दर की ठोकरे खाने को बाध्य किया। तुम उसी पाण्डु की सन्तान हो जिस के उत्तराधिकारी अपना अधिकार मांग रहे है। तुम उन के भाई हो, और हो तुम न्याय प्रिय। तुम्हारा कर्तव्य है कि जिस स्थान पर तुम्हारे छोटे भाईयों का पसीना गिरे वहा तुम अपना रक्त बहाने को तैयार रहो । तुम्हारे लिए यह शोभा नहीं देता कि तुम यह जानकर भी पाण्डव तुम्हारे भाई है, दूसरे के कारण उनके शत्रु के रूप में युद्ध में जानो। मैं तुम भाईयों को एक ही शिवर में देखना चाहती हूँ।"~कुन्ती ने अपने मन की बात कह दी।
"मां! तुम ने और तुम्हारे पत्रो ने मेरे साथ जो भी व्यवहार किया हो, पर मैं तुम्हारे आदेश के आगे अवश्य ही मिर भुका देता । मैं तुम्हारे चरणो मे मिर रख कर कहता कि बोलो मां, तुम क्या चाहती हो । पर अब वहत देर हो चुकी है। तुम बहुत देर मे जागी, मैं दुर्योधन के पक्ष में है और उमी की ओर से लड़ने का वचन दे चुका है। दुर्योधन ने मेरी उस समय महायता को धी जव