________________
कुन्ती को कर्ण का वचन
लिए घोर पक्षपात पूर्ण है । आज भी तुम्हारे हृदय मे कर्ण के प्रति न ममता है न सहानुभूति बल्कि उसके आक्रोश से अपने प्रिय पुत्रो को बचाने की भावना है ।"
३३१
वेटा ! पाण्डव तुम्हारे ही भ्राता है। तुम उन के ज्येष्ठ भ्राता हो। मैं यह कैसे सहन कर सकती हूँ कि तुम भाई भाई ही श्रापम मे एक दूसरे का नाश करने के लिए लडो । मैं यह कैसे देख सकती हू कि मेरे प्रिय पुत्र ही आपस मे शत्रुओ के रूप मे रागन मे जाये । तुम चारो के शरीर मे मेरा ही रक्त है। मुझे तुम से भी उतना हो प्रेम है जितना युधिष्ठिर से अथवा अर्जुन या भीममेन से ।" - कुन्ती ने ग्रार्त स्वर में कहा ।
कर्ण ठहाका मार कर हम पडा । पर वह ठहाका बडा ही व्यग्य पूर्ण था । कहने लगा- " मा तम आज भी उन तीन पुत्रो के लिए उतना ही प्रेम रखती हो, जितना तुम ने उन के प्रति पहले * से रखखा है। श्राज भी तुम्हे मुझ से कोई प्रेम नही है । तुम्हे
प्रेम है तो उन तीनो से और तुम्हे भय है कि कही मै उन के प्राण नल लू मा ! तुम्हारी रंगो मे कितना पक्षपात है? तुम ने मुझे जन्म दिया, फिर भी क्यो मेरे प्रति मातृत्व नही दर्शा पाती ? क्या रथवान की गोद में पलने के कारण मुझ से तुम्हे तनिक भी सहानुभूति नही ? नही, नहीं मा । तुम ने मुझे कभी भी प्रेम पूर्ण दृष्टि से नहीं देखा । ग्राज भी तुम्हारी ग्राखो पर युधिष्ठिर, अर्जुन और भीमसेन के मोह की पट्टी बधी है । अभी अभी तुम श्रपनी भूल का प्रायश्चित करने को तैयार नही हो ।"
1 उम ने रोकर
कुठारा घात न
श्राज जब रण
कुन्ती के नेत्रो से पुनः अश्रुधार फूट पडी । कहा - "बेटा । यह बात कह कर मेरे हृदय पर करो। मैं अपना हृदय चीर कर कैसे दिखाऊ ? की तैयारियां हो रही है । मैं इस रहस्य को बताने केवल इसी लिये ग्राई कि मुझे उन तीनो के प्रति अधिक प्रेम है । बल्कि श्राई हूँ इस लिए कि मैं तुम मे से किसी को भी अपने किसी भ्राता का बंध करते नहीं देख सकती। में नही चाहती कि अर्जुन जो अभी तक वास्तविकता को न जानने के कारण तुम्हारा भ्रम वा ग्रपमान