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. जैन महाभारत
. तो क्या मैं राधापुत्र नही हू?" कर्ण ने आश्चर्य विमूढ़ हो कर पूछा।
. "नही बेटा, तुमने मेरी कोख से जन्म लिया है। तुम पाण्डवो के ज्येष्ठ भ्राता हो.। उन.के.जिन के प्राणो के तुम शत्रु बन गए हो । मैं ही तुम्हारी वह अभागिन माँ हू, . जो-तुम्हे-जन्म देने के पश्चात भी तुम्हे कभी अपना पुत्र न कह सकी। क्योंकि महाराज पाण्डू के साथ विधिवत विवाह होने से पूर्व ही तुमने जन्म लिया। मैंने तुम्हारे परम.प्रतापी पिता को निशानी के स्वरूप कुण्डल पहनाकर नदी मे बहा दिया था। पर शोक कि हमारी योजना पूर्ण नही हुई और तुम्हारे पिता के बजाये तुम्हे रथवान ने पकड़ लिया और ससार ने तुम्हें उसी की सन्तान जाना।"-सारा रहस्य बताते हुए कुन्ती ने गदगद स्वर से कहा।
। परन्तु कर्ण में कुन्ती की आशा के अनुसार उत्साह जागृत नहीं हुप्रा । उस ने कुछ सोच कर कहा-"तो तुम्ही हो वह अन्यायी मां जिसने मुझे जन्म देकर नदी की लहरो मैं फेक दिया था। तुम ही हो वह पापिन जिसने अपने पाप को छुपाने के लिए मुझे मौत के मुह में फेंक दिया था। तुम ही वह हो जिस के कारण मैंने अर्जन द्वारा अपमान के कड़वे घुट पिये। यदि यही है तो फिर अब क्यो मेरे पास अपने अन्याय का बखान करने आई हो?"
कर्ण के इन तीक्ष्ण शब्दो से कुन्ती का हृदय विध गया। उस ने कहा- बेटा। मुझे क्षमा कर दो। हां में ही वह पापिन हूं जिसने कि निदोष होते हुए भी लोक निन्दा के डर से तुम्हे तुम्हारे पिता जी की आज्ञानुसार नदी में इस लिए बहा दिया था ताकि वें. तुम्हें नदी से निकाल कर पुत्रवत तुम्हारा पालन-पोषण करें। तुम्हारे नाना जी उनके साथ मेरा विवाह नहीं करना चाहते थे क्योंकि उन के प्रति भ्रम था कि वे पाण्डु रोग में पीड़ित है । परन्तु मैंने उन्हें अपना सिर-ताज. मान लिया था। . वास्तव में, मैंने कोई पाप नहीं किया था। '. "तो आज तक तम ने अपने बेटे पर ईम, रहस्य को क्यों नहीं खोला ? जब भरो मभा में अर्जुन मेग अपमान कर रहा था नर