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कुन्ती को कर्ण का वचन
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लगी ऐसे उपाय को जिस से वह कर्णं के मन में पाण्डवो के प्रति करुणा जागृत कर सके। उस ने सोचा कि यदि कर्ण यह जान जाय कि जिन्हे वह शत्रु समझ बैठा है, वे उस के सगे भाई है तो अवश्य हो वह अपने मन से वैर भाव को निकाल देगा। पर यह हो तो कैसे? कौन बताये उसे यह रहस्य। तभी उस ने निश्चय किया कि वह अपनी भूल को सुधार कर पाण्डवो के प्राणो की रक्षा करेगी। .
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: :कर्ण ने देखा कि सामने माता कुन्ती खडी है। उस ने उन का अभिनन्दन करते हए कहा- "राधा पुत्र कर्ण आप को करबद्ध होकर प्रणाम करता है। कहिए माता जी-आप ने कैसे कष्ट किया ।" - कुन्ती के मन में ममता. जाग गई। करुणा की खान कुन्ती की पलकें भीग गई। उन का निचला होठ काप गया। बोली"बेटा-! अपने को राधा, पुत्र कह कर मुझे लज्जित क्यो करते हो। मैं अपनी भूल को सुधारने आई हू।",
. आश्चर्य चकित रह गया कर्ण। उसने कहा-"प्राज़ श्राप कैसी बाते कर रही हो? मेरी तो कछ समझ मे नही आया।"
- "बेटा ! मैं तम्हे अपने हृदय से लगा कर एक बार मातृत्व को बलवती इच्छा को पूर्ण करना चाहती है। पर आज तक अपनी ही एक भूल के कारण अपनी कामना को पूर्ण न कर सकी।
में अपने ही पुत्र को अपना न बता सकी। बेटा ! में भाज तुम से __अपनी भूल के लिए क्षमा याचना करने पायी हू।"-कुन्ती ने कहा। .
"मैं अब भी नही समझा। कि आप..........।
.."बेटा! तुम मेरे पुत्र हो। में तुम्हारी मां हूं। एक लम्बे प्रस से विसं रहस्य पर परदा पड़ा रहा, मैं उसी को बताने आई हूं।" -कुन्ती गदगद स्वर में बोली।
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