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________________ कृष्ण ज्ञाति दूत बने L कि मैं उन्हें सूई की नोक जितनी भूमि घेरती है, उतनी भूमि भी देने को तैयार नहीं। यदि आप को पाण्डवो के जीवनयापन की इतनी ही चिन्ता है तो आप अपने राज्य मे से ही दो चार ग्राम क्यो नहीं दे देते।' ३२३ 1 श्री कृष्ण इस अवसर पर दुर्योधन के ग्रहकार को सहन नहीं कर पाये । बोले-''दुर्योधन ! तुम्हे अपनी शक्ति का बड़ा घमण्ड है । पर यह मत भूलो कि तुम्हारा वास्ता रण में उसने अर्जुन से पड़ेगा जिसका मुकाबला तुम तो क्या देवता तक भी नही कर सकते। उसके गाण्डीव के पराक्रम को तुम मत्स्य राज पर की चढ़ाई के अवसर पर देख चुके हो। रखो कि तुम्हारी हट, सारे परिवार के नाश का कारण बनेगी । मैं तुम्हारे हितचिन्तक के नाने समझाता IMG कि मान जाओ । वरना फिर पश्चाताप करोगे । गधारी जंमी सत्यवती को निपूती मत बनाओ ।" स्मरण हम चेतावनी को सुन कर दुर्योधन के तन में श्राग मी लग गई और वह उबल पड़ा - "राजदूत ! मैंने भी पृथ्वो को पाण्डव विहीन करने की शपथ खा ली है । यदि गाण्ड की ओर से देव राज इन्द्र भी युद्ध करने आया तो वह भी बच कर न जायेगा । उन भिख मगो पाण्डवको कह देना कि दुर्योधन खैरान वाटने के लिए नहीं राज्य करने के लिए उत्पन्न हुआ है ।" इतना कह कर वह राज सभा से बाहर चला गया। उस के साथ कर्ण, दुशासन यादि भी चले गए । सभा में गड़बड मच गई। भीष्म, धृतराष्ट्र तथा विदुर सन्न रह गए सभी विवेकशील व्यक्ति दुर्योधन के व्यवहार की आलोचना करने लगे । वर दुर्योधन ने अपने मित्रो के साथ मिल कर श्री कृष्ण को गिरफ्तार कर लेने का षडयन्त्र रचा। श्री राज सभा चागे ओर से घेर ली गई श्री कृष्ण पहले ही मावधान थे। उन्होने उसी समय अपना विराट रूप प्रदर्शित किया अर्थात छुपे हुए अस्त्र सम्भाल लिए चक्र प्रस्त्र को विशेषतया उन्होंने सम्भाला । उनका
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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