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* जैन महाभारत
इन केशो की कहानी भूल मकते है । दुशासन के पापी हाथो में हुआ मेरा अपमान वे भुला सकते है और उन पापियों से मेरे अपंमान का प्रतिशोध लेने की उन की प्रतिज्ञा कदाचित उन्हे याद ने रही झे, पर आज भी इन बिखरे केशो से मुझे उस पापी के हाथो को गंध आती रहती है। अर्जुन तथा भीम भले ही युद्ध न करें, पर मेरे पिता, जो यद्यपि बूढ़े ही हैं, फिर भी मेरे पुत्रों को साथ लेकर युद्ध मे कद पडेंगे । यदि किमी कारण वा पिता जी भी युद्ध करने न साये तो न सही, सुभुद्रा का पुत्र अभिमन्य तो है । उसी को सेना पति बना कर मेरे पाचो बेटे कौरवों मे लडेंगे। परन्तु किसी न किमी भाति दुष्टो से मेरे अपमान का बदला अवश्य लेंगे। मेरे हृदय मे प्रतिहिंसा को जो आग धुप्रा दे रही है, उसे धर्मगज की खातिर मैने १३ वर्ष तक दबाये रक्खा भड़कने न दिया। परन्तु अब मुझे मे सहा नहीं जाता। जिन के कारण मैंने घोर अप्-- मान सहे. ~जिन के कारण मैंने दासी बन कर एक वर्ष तक मेवा दहल-की, आज जव नेरे अपमान का बदला लेने का प्रश्न प्राया नो वे मन्धि की बात करने लगे। आज वे दुष्ट पापो उन के भाई हो गए जिन्होंने मुझे भरी सभा मे नगा करने का प्रयत्न किया था, यह भाई भाई तो पुन: भाई भाई का राग अलापने लगे परन्तु जब मेरे ऊपर अन्याय हो : रहा था, तब क्या था ? इम लिा मधुसूदन मेरी-प्रतिज्ञा की लाज रखना ।.एक पतिव्रता के ऊपर हुए अन्यायो को न भूलना । - क्या में जीवन भर इन केशों को यू ही विखरा रहने दूंगी?" - इतना कहते कहते द्रोपदी की आखें डब इबा भाई । उमका गला रध गया ।
द्रौपदी को इस प्रकार दुखी देख कर धी कण बोल- "शेश्रो मत, बहन ! रोने का तो कोई कारण हो नही । मानि स्थापना की मो मैं शर्ते रक्खूगा, उन्हे धृतराष्ट्र के बेटे मानेंगे नहीं, फलत युद्ध हो कर ही रहेगा। रण म्धल में पड़ी कौरवों की ल में कृत्ती और मियागं को प्राहार बनेगी । पाताईयो का रक्त भूमि पर गन्दे पानी को , भांति इलता फिरेगा। उनका सर्व नाश हो जाएगा। और पाण्डव ‘पुनः राजमिहामन के स्वामी बनेंगी। तुम्हारे ऊपर हुए अत्याचार का बदला अवश्य लिया जायेगा। नम हम बात मे निचिल