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कृष्ण-शांति दूत बने
- इतना कह कर श्री कृष्ण ने पाण्डवो तथा द्रौपदी से विदा
ली। .
श्री कृष्ण के शांति दूत के रूप में प्रागमन की सूचना जब धृतराष्ट्र को मिली तो उन्हो ने सारा नगर सजाने की आज्ञा दी। पौर विदुर जी से बोले-“वासुदेव के लिए हाथी, घोडे रथ आदि उपहार भेंट मादि करने का प्रबन्ध करो। और भी अनेक उपहार उन्हे भेट करने का प्रबन्ध किया जाय ऐमी मेरी कामना है, वे प्रसन्न हो जायें। कुछ ऐसा करो।
जन्हे भेट कर आदि करने का वासुदेव के लिएर सजाने की प्रचना जब
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विदूर जी बोले-"राजन । आप का विचार ठीक नहीं। वे ऐसे व्यक्ति नहीं जो प्रलोभनों के वश में प्रा जार्य अथवा शल्य की भाति वे चक्कर मे आ कर आप के पक्ष में आ जाये। वे तो गज दूत बन कर रह रहे हैं, उन्हें प्रसन्न करने का तो एक ही उपाय हैं कि वे जो सन्धि वार्ता चलाने पा रहे है आप उसे स्वीकार कर
धृतराष्ट्र को विदुर की बात ठीक जची और उन्होने उपहारों का प्रबन्ध करने का विचारत्याग दिया ।
परन्तु जब दुर्योधन को श्री कृष्ण के आगमन का ममाचार मिला उसने सोचा कि श्री कृष्ण का मन्धि वार्ता के लिए आगमन उस के लिए कुछ अच्छा सिद्ध नही होगा क्यो कि उन के आने से कोरडी के समस्त विवेकगील सरक्षक, तथा सहयोगी श्री कृष्ण के प्रभाव में आकर सन्धि को तैयार हो जायेंगे ।...यह भी सम्भव है क.श्री कृष्णा के कारंण कौरव वीरो में दो पक्ष बन जाये। एक सन्धि चाहने वाला और दूसरा युद्ध चाहने, वाला कौरव वीरो दो भागों मे .. विभाजित हो जाने से जो दगा उत्पन्न होगी. वह