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कृष्ण शाति दून बने
मे सन्धि करा दे तो यह काम उस सफलता से सहस्त्र गुना अधिक मूल्यवान तथा हितकारी होगा, जो पार की सहायता से रण क्षेत्र मे
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मिलेगी।"
- उसी समय भीम वहा पहुंच गया। जब उसने सुना कि श्री कृष्ण शाति दूत बन कर हस्तिना पुर जा रहे हैं, तो अपने स्वभाव के अनुसार वह कुछ नही हुआ. इस ने कहा - "सम्पूर्ण राज्य महा युद्ध के द्वारा प्राप्त हो तो भी वह उस से अधिक कल्याण कारी नही हो सकता जो कि राज्य का कोई अंश भी सन्धि के द्वारा प्राप्त होने से । आप मन्धि करा दे तो अहोभाग्य ।" .. ..
- अर्जुन को जब श्री कृष्ण के हस्तिना पुर जाने का समाचार मिला, तो वह भी उनके दर्शन करने वहा पा गए और श्री कृष्ण का अभिवादन कर के बोले - "मधुसूदन । हमें युद्ध नहीं सन्धि चाहते है आप वहा जाकर जैसे भी हो सन्धि वार्ता को सफल बनाने का प्रयत्न कोजिए और विश्वास रखिए कि आप जो भी करा देंगे हमें स्वीकार होगा ! --- . -- - :
कुछ देर से द्रौपदी हूँ वडो वडो यह मब बाते मुन रही थी, उमे यह बाने पसन्द' न पाई। उसके मन मे तो प्रतिशोध की ज्वाला धधक रही थी। जब अर्जुन ने भी सन्धि को ही सराहा तो उस से न रहा गया सामने आ गई और श्री कृष्ण से बोली,-"मधुसूदन !
खुले हुए केश देख
और श्री कृष्ण से की ही सराहा तो उस
श्री कृष्ण समझ गए कि वह क्या कहना चाहती है, तो भी उन्होने द्रौपदी के प्रश्न का ही उत्तर दिया- "हां दोपदी आज से जही १३ वर्ष पूर्व जब तुम वनाम के लिए गई थी तब भी मैंने इन खले हुए केशो को देखा था।'
- . .--- .-- - .. . ..."वस-हस्तिना पुर जाने मे-पूर्व मेरे इन विखरे वालों को तानक ध्यान से देम्वो-। इन विखरे- हए केशो-में मेरे अपमान की कथा छिपी हुई है। इन...को दृष्टि मे-रखो फिर जो उचित जचे करा मधुसूदन ! आज भीम सेन, और धनुर्धारी कीर धत्तजय मेरे
या को देखा था वनवास के
लिहा दौपदी" तो भी