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जैन महाभारत
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रहे ।
दूसरे दिन म जय भी आ गए।
दरबार लगा था, कौरव कुल के सभी विवेक शील एव अविवेकी व्यक्ति उपस्थित थे। सजय ने आकर युधिष्ठिर तथा श्री कृष्ण से हुइ चर्चा को सविस्तार कह सुनाया। और अन्त में दुर्योधन को सम्बोधित करते हुए कहा
विशेषतया दुर्योधन को चाहिए कि अर्जुन की बात ध्यान पूर्वक सुनें।" ----- ---- -
बीच ही मे दुर्योधन आवेश मे आकर बोला- "क्या कहा है अर्जुन ने ?"--उस समय दुर्योधन का मुह तमतमा रहा था। - सजय बोले. -
"अर्जुन ने कहा है कि इस मे कोई सन्देह नही कि मैं और श्री कृष्ण दोनो मिल कर दुर्योधन और उन के साथियो का नाश कर के ही रहेगे मेरा, गाण्डीव धनुष युद्ध के लिए लालायित है। धनुष की डोरी आप ही आप टकार कर उठती है। तरकस के तीरें स्वय उछल रहे है वे तरकश मे झाक कर पूछ लेते है कि हमे दुर्योधन को मारने के लिए कब प्रयोग करोगे? दुर्योधन का विनाश काल निकट अा गया है इसी लिए वह हमे युद्ध के लिए विवश कर रहा है:" -
. मुनने ही दुर्योधन की प्रांखो मे खून वरमने लगा।. परन्तु भीम-जी-बोले- 'दुर्योधन ! निम्मुन्देह अर्जुन तथा श्री कृष्ण दोनों मिल कर- युद्ध करं- तो उनके मामने देवता भी नहीं जीत सकते । जब वे दोनों एक साथ मिल कर तुम्हारे विरुद्ध लड़ने लग जायेंगे तो तुम्हाग पता भी न लगेगा ,'' - कणं को बड़ा झोध पाया। वह गरज कर बोला--"जय मै उम अर्जुन नामक छोकरे की प्रगमा मुनता हूँ तो मेग रक्त बोलने लगता है। जिसे आप देवताओं से भी अधिक समन, रहे