________________
जैन महाभारत
भविष्य में भी किसी श्राडे समय पर हम उसके काम आ सके । यदि वह नहीं चाहता कि हमाग छीना हुआ भाग पूरा का पूरा हमे वापिस मिले तो केवल पांच गांव ही हमे दे दे। हम उसी से मन्तुष्ट हो जायेगे । दुर्योधन को मेरा यही सन्देश सुना देना। और अन्न में कहना कि वह अपनी उदारता का परिचय दे, मैं तो सन्धि के लिए भी तैयार हूं और आवश्यकता पडने पर युद्ध के लिए भी ।"
३०८
संजय ने युधिष्ठिर का सन्देश सुन कर एक वार पुन उनकी धर्म बुद्धि की प्रशंसा की और उनके सन्देश को अक्षरशः पहचाने का वचन देकर हस्तिना पर की ओर प्रस्थान कर दिया। परन्तु जाते समय अर्जुन से उनका भेंट हो गई। अर्जुन ने रोक कर कहा "क्या आप सन्धि का सन्देश लेकर आये थे ?"
“हाँ।"
:
•
"तो क्या रहा । "
" प्राप की ओर से सन्धि की पूर्ण तथा कामना है।"
"क्या दुर्योजन भी तैयार है।"
"अभी तो नही ।"
"तो फिर आप दुर्योधन मे जाकर कहें कि मेरा गाण्डीव धनुष युद्ध के लिए लालायित हो रहा है। तरकश के वाण स्वय उछल उछल कर पूछ रहे है "कत्र ? कब ?" अर्थात को यमलोक पहुचाने के लिए हमे कब प्रयोग करोगे ? मेरे सारथी होगे तब हम दोनों मिल कर उसे धूल चटा रहेंगे। ऐसा मालूम होता है कि दुर्योधन के नाश के दिन मारहे है, "
दुर्योधन श्री कृष्ण
कर ही
निकट