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सन्धि वार्ता
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मे आना पड़े। फिर भी भीष्म- हमारे लिए पूजनीय हैं। हम चाहते हैं कि वे इस अवसर पर कौरवो तथा पाण्डवो दोनो के हित के लिए कार्य करे।
- "दुर्योधन से-जाफर कहे कि हम उसके भाई है यदि केवल राज्य के लिए हम भाई भाई आपस मे लडे तो सारा ससार हम पर थूकेगा। हम उस वश के लोग हैं जो राजकुलों मे पूजनीय रहा है। दुर्योधन ने राज्य के दो भाग कराये, तो भी हमने प्रसन्नता पूर्वक उसे स्वीकार कर लिया। उस ने हमे जुए के लिए निमंत्रित किया, हम ने भाई की भाति स्वीकार कर लिया। उस ने हमें बनवास दिया, हम बनो में चले गए। उस ने ५ वर्ष के अज्ञात वास की इच्छा प्रकट की, हमने राजकुमार होते हुए विराट के दरबार मे सेवा टहल करते हए अज्ञात वास किया . एक बार जब गन्धवा ने उसे बन्दी बना लिया था तो हम ने भाई होने के नाते उसे उन से छुडवाया। मत्स्य राज्य पर आक्रमण के समय अजून चाहता तो उस का बध भी कर सकता था, पर भाई के नाते उस ने ऐसा नहीं किया। अब समय आया है कि वह हमारे प्रति भ्रातृत्व का प्रदर्शन करे और हमे अपना भाई समझ कर हमारे साथ न्याय करे। राज्य चाहे कितना विशाल हो, वह आदमी की आत्मा को महान नहीं बनाता, मनुष्य सम्पत्ति अथवा उच्चासन के कारण उच्च श्रेणी प्राप्त नहीं कर सकता और धन धान्य सच्चिदानन्द की प्राप्ति के लिए व्यर्थ है। मनुष्य की महानता उनके शुभ कर्मों मे उस के चरित्र में निहित है। इस लिए वह उदारता का परिचय दे। मनुष्य को कभी अपनी शक्ति पर ग्रहकार नहीं होना चाहिए। अतः उसे हमारे साथ सन्धि कर के इस समस्या को सुलझा लेना चाहिए । न्याय ही राजा का प्राभूषण होता है। मित्र, सहयोगी, सेना, सम्पत्ति, बन्धु बान्धव कोई भी अन्त समय मैं आत्मा का साथ नहीं देता काम आता है तो अपना धर्म। मनुष्य योनी में आकर भी अपनी आत्मा के कल्याण के लिए धर्म का मार्ग न अपनाया तो मनुप्य जन्म व्यर्थ चला गया समझो मत्य का क्या ठिकाना, कब पाकर ढोल बजादे। इस लिए अहकार को छोड़ कर उसे सन्धि के लिए तैयार हो जाना चाहिए और हमे अवसर देना चाहिए कि