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ठीक है आप यह कार्य मेरे ऊपर छोड़ रहे है तो विश्वास रखिये कि मैं अपना पूर्ण प्रयत्न करूगा कि किसी प्रकार समझौते का रास्ता निकल ग्राये"
जैन महाभारत
धृतराष्ट्र ने सारी बाते समझाकर सजय को उपप्लव्य नगर
भेज दिया ।
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उपप्लव्य नगर पहुचते ही सजय का पाण्डवो की ओर से बहुत आदर हुआ । युधिष्ठिर ने सर्व प्रथम उस मे हस्तिनापुर का समाचार पूछा । उसके पश्चात सजय बोला "राजन् बडे सौभाग्य की बात है कि आज आप अपने सहयोगियो के साथ सकुशल है । राजा धृतराष्ट्र ने आपकी कुशलता पूछी है सत्य व्रत का पालन करने वाली राजकुमारी द्रोपदी तो सकुशल है न ?"
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"अर्हन्त भगवान की कृपा दृष्टि से हम सभी कुशल हैं । और
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मारे कौरव कुल की कुशलता की कामना करते है 'युधिष्ठिर वो इसके उपरान्त युधिष्ठिर ने सजय से उपप्लव्य नगर के पधारने का कारण पूछा ।
मजय बाला - "मुझे महाराज धृतराष्ट्र ने आपकी सेवा में एक सन्देश पहुंचाने के लिए भेजा है।"
कहिये उनका क्या सन्देश है ?"
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वे उनका विचार है कि "युद्ध किसी भी दशा मे मानव
समाज के कल्याण का साधन नहीं बन सकता। इस लिए चाहे जो हो
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आप युद्ध की कामना न करें । - संजय बोला महाराज धृतराष्ट्र का यह सन्देश हम शिरोधार्मय करते है और साथ ही यह भी कह देते है कि हम स्वयं युद्ध करने के इच्छुक नही है । परन्तु अपने ऊपर हो रहे अन्याय का प्रतिकार भी चाहते है | यदि किसी प्रकार भी दुर्योधन सन्धि के लिए तैयार हो जाए तो हम युद्ध नहीं करेंगे। युद्ध हमारा उद्देश्य नहीं सावन हा मक्ता है ।" - युधिष्ठिर बोल |