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मन्धि वार्ता
और तुम्हे यह भी ज्ञात है कि पाण्डव बड़े पराक्रमी हैं अपने पिता , के समान ही वे प्रतापी है। उन्होने अपने बाहबल से राज्य का
जो विस्तार किया, वह भी मुझे ही सौप दिया था। मैंने उन मे दोष ढूढने का प्रयत्न किया परन्तु कोई दोष न मिला। युधिष्ठिर तो धर्मराज है। उसकी बुद्धिमत्ता, न्यायप्रियता तथा धार्मिकता के आगे तो मेरा सिर भी झुक जाता है। युधिष्ठिर ने दुर्योधन की सारी कुटिलताओ को क्षमा किया । वाल्यकाल से दुर्योधन ने उन्हे मिटाने के षडयत्र रचे, फिर भी पाण्डव मुझे पाण्डु के स्थान पर मानने रहे । अब उन्होने दर्योधन की शर्त पूर्ण कर दी और चे अपने खोए राज्य को पुन प्राप्त करने के अधिकारी हो गए। परन्तु दुर्योधन और कर्ण जीते जी उनके राज्य को लौटाना नहीं चाहते जब कि पाण्डवो के साथ एक बड़ी शक्ति है । श्री कृष्ण जैसा प्रकाण्ड विद्वान गजनीतिज्ञ, कटनीतिज्ञ तथा योद्धा सहायक है। राजा विराट उनका भक्त हैं । पाचाल नरेश और उसकी समस्त शक्ति, सात्यकि व उमकी समस्त विशाल सेना, कितनी विशाल शक्ति है पाण्डवो की ओर । जव कि स्वय पाण्डव ही एक महान शक्ति है । अर्जुन अकेला ही दिग्विजय कर सकता है । उस अकेले ने ही मत्स्य राज्य पर कौरवो के आक्रमण के समय समस्त कौरव वीरो को मारभगाया था। जो कर्ण आज बढ बढकर बातें करता है वह स्वय अर्जुन के हाथों मुह की खा चुका है। भीम मे तो अमीम वल है उमकी टक्टर का अब पृथ्वी पर एक हो वीर है, वह है बलराम। नकुल सहदेव आदि भी सुलझ हुए योद्धा है । और युधिष्धिर तो अपने पुण्य शुभ प्रकात वथा शुद्ध विचारो के कारण इतनी महान शक्ति है कि वे चाहे तो सारे कौरवो को भस्म कर डाले। मुझे युधिष्ठिर से भय लगता है। ऐसी दशा मे कोई भी यद्ध का छिडना हमारे नाश का ही कारण वन मकता है अत तुम महाराज युधिष्ठिर के पास जाओ
और उन के सहयोगियो मे भी मिलो और जिस प्रकार भी हो मन्धि की वार्ता चलायो । प्रयत्न करना कि वे इधर से कुछ मिले या • न मिले, पर मन्धि को तैयार हो जाए। यह भी मालूम करो कि मन्धि
कम से कम किन शर्तों पर हो सकती है।
सजय ने उत्तर दिया- "राजन । आप का विचार बहुत ही