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* पचीसवाँ परिच्छेद * .
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सन्धि- वार्ता
पाचाल नरेश के महामत्री जब हस्तिनापुर पहुचे तो एक गजदूत की भाति उनका आदर सत्कार किया गया वे वहा जाकर अतिथि हो गए और ऐसे अवसर की खोज मे रहे जब कि दरवार मे भीष्म, धनगाट, द्रोण विदर कल्प, आदि आदि सभी वयोवृद्ध विद्वान, राजनितिज्ञ तथा प्रभावशाली व्यक्ति उपस्थित हो । एक दिन जब उन्हे पता चला कि कौरव वश के सभी प्रमुख व्यक्ति-मभामे उपस्थित हैं, और हस्तिनापुर के राज्य के समस्त सहयोगी तथासरक्षक दरवार मे बिराजमान है तो वे वहां पहुचे। यथा विधि सभी को प्रणाम करके तथा कुशल समाचार कहने तथा पूछने के उपरान्त उन्होने पाण्डवों की ओर से मन्धि प्रस्ताव प्रस्तुत करते हुए कहा
"अनादि काल से जो धर्म तत्व, रीति तथा नीति प्रचलित है, उससे आप सभी परिचित हैं । आप लोगो के धर्म सम्बन्धी ज्ञान ' के विद्वान, नीति सम्वन्धी धरन्धर और विश्व के सलझे हए गुरुजन
विद्यमान हैं । आप न्याय के रक्षक है और रीति रिवाजो के मानने वाले है । राजकुल की यह.रीति रही है कि पिता की सम्पत्ति पर पुत्रो का समान अधिकार होता है । यह राज्य. सिंहासन जिस पर प्राज महाराज दुर्योधन विद्यमान है, कभी इसे पाण्डु नरेश सुशोभित करते थे। उन्होने अपने बाहुबल तथा पराक्रम से हस्तिनापुर राज्य का