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-जैन महाभारत
मन की भावनाओं को दबा कर बोले-"मामा जी । आपने दुर्योधन के स्वागत सत्कार के कारण उसे जो वचन दिया है आप उसे पूर्ण करे । परन्तु मै बस इतनी ही बात आप से पूछना चाहता हूं कि आप रण कौशल में बहत निपुण है, अवसर आने पर कर्ण आप को अपना सारथी बना कर अर्जुन का बध करने का प्रयत्न करेगा मैं यह जानना चाहता हूँ कि उस समय आप अर्जुन की मृत्यु का कारण बनेगे या अर्जुन की रक्षा का प्रयत्न करेगे ? मैं यह प्रश्न उठा कर आप को असमंजस मे नहीं डालना चाहता था, पर पूछने को मन कर आया तो पूछा लिया।"
मद्रराज बोले- "बेटा युधिष्ठिर ! मैं धोखे में प्राकर दुर्योधन को वचन दे बैठा, इस लिए युद्ध तो उनकी ओर से ही करूगा। पर एक बात बताए देता है कि यदि कर्ण अर्जुन का बध करने की इच्छा से मुझे अपना सारथी बनायेगा तो मेरे कारण उस को तेज नष्ट हो जायेगा और अर्जुन के प्राणो की रक्षा हो जायेगी। चिन्ता न करो जुए के खेल में फंसकर तुम्हे और द्रौपदी को जो कष्ट झेलने पड़े अव उनका अन्त आ गया समझो। तुम्हारी कल्याण होगा । इस समय की भूल के लिए मुझे क्षमा करना ।