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जैन महाभारत
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लेना चाहिए। अपने मित्रो से विचार विमर्श करने के उपरान्त उस ने अपने कुशल कर्मचारियो को आदेश दिया कि जहा कही भी शल्य की सेना डेरे डाले, वही पहुच कर उसे समस्त प्रकार की सुवि. धाए पहुचाई जाये। किसी प्रकार का कष्ट सेना तथा राजा शल्य को न होने पाये। साथ हो रास्ते मे जहा तहा विशाल मण्डप बनवाये गए। सारा रास्ता, जिस से सेना को गुजरना था, बहुत ही आकर्षक ढग पर सजवा दिया गया। जहाँ भी पडाव पडता राजा शल्य और उसकी सेना का बहुत ही सुन्दर ढग से सत्कार किया जाने लगा। राज्य के समस्त साधन शल्य तथा उनकी सेना को प्रसन्न करने मे लगा दिए गए। खाने पीने की वस्तुप्रा का सुन्दर प्रवन्ध कर दिया गया। प्रत्येक पडाव पर उनकी सेना, तथा उन के मन बहलाव के लिए भी अच्छे कलाकारो को नियुक्त किया जाता। रहने, खाने पीने और मनोरजन का इतना सुन्दर प्रबन्ध देख कर राजा शल्य मन ही मन बहत प्रसन्न हए। और जब इस सुप्रवन्ध को उन्होने प्रत्येक पड़ाव पर पाया तो वे चकित रह गए। इतनी विशाल सेना के लिए इतना सूप्रबन्ध किया जाना वास्तव में बहुत कठिन था मद्रज ने सोचा कि उनके भानजे युधिष्ठिर न इस दशा मे होते हुए भी इतना शानदार स्वागत करके दिखाया है कि वह उनका कितना आदर करता है ।
एक बार एक पड़ाव पर उन्होने आदर सत्कार में लगे कम. चारियो को बुला कर कहा-'हमारी सेना और हमारा इतना खातिर दारी करने वाले लोगो को हम जितनी भी प्रशसा कर कम ही है। इस अभूत पूर्व सत्कार तथा अतिथ्य के लिए हम प्रवन्धका के हृदय से प्राभारी हैं। हम इस सत्कार के प्रवन्धको को अपना ओर से उनकी कार्य कुशलता, निपुणता तथा परिश्रम के लिए पुरस्कृत करना चाहते हैं, आप लोग कुन्ती पूत्र युधिष्ठिर से हमारा ओर से कहे कि वे इस के लिए बुरा न माने और हमे अपनी सम्मात
कर्मचारी चाहते थे कि वे उसी समय मद्रराज का भ्रम नित्रा रण हेतु बता दें कि उनका सत्कार दुर्योधन की ओर से किया जा रहा है, पर वे उस समय चुप रहे क्यो कि उन्हे ऐसी कोई आज्ञा दुयाघर