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________________ मामा विपक्ष मे अत उस समय वे चुप रहे और यह की ओर से नही मिली थी। दुर्योधन गुप्त रूप से मद्र राज की सेवा बात दुर्योधन से जा कही जब दुर्योधन ने उक्त के साथ साथ चल रहा था, ताकि उचित अवसर पाकर वह मद्र राज से अपनी सहायता का वचन ले सके । बात सुनी तो उसकी बाछे खिल गई। समाचार देने वालो को उसने अच्छा पुरस्कार दिया । X ' X X X X X महाराज को उसके निजि मन्त्री ने आकर बताया- "महाराज हस्तिनापुर नरेश दुर्योधन श्रापके दर्शन करना चाहते है ।" दुर्योधन के अनायास ही आ टपकने का समाचार सुनकर गल्य को बहुत आश्चर्य हुआ। फिर भी उन्हो ने तुरन्त आदेश दिया - " उन्हे ससम्मान ले आओ ।" ज्यों ही दुर्योधन को उन्हो ने अपने सामने देखा उन्हो ने परिवारिक सम्बन्धी होने के कारण उससे स्नेह प्रदर्शित करते हुए बैठाया । बोले-'दुर्योधन ! अनायास 1 ही तुम कैसे या घमके ? " "मुझे ज्ञात हुआ कि आप अपने सत्कार के प्रबन्ध से बहुत प्रसन्न हुए हैं ! इसे अपना सौभाग्य समझकर आप की प्रसन्नता के लिए अपना प्रभार प्रकट करने के लिए ही मैं चला आया । यह है कि आप के सेना सहित उपालब्य नगर की ओर जाने बस जल्दी मे जो कुछ हो का समाचार मुझे अनायास ही मिला । सका किया । अहो भाग्य कि आप उस से सन्तुष्ट है । सुना है आप सत्कार के प्रबन्धको को पुरस्कृत करना चाहते हैं, यह हमारे लिए बहुत ही प्रसन्नता की बात है फिर भी आपकी प्रसन्नता ही हमारे लिए पर्याप्त है, इस सत्कार का इस से बडा और पुरस्कार क्या हो सकता है कि आप ने प्रशंसा कर दी । - दुर्योधन ' ने अपनी बातो द्वारा अपने कार्य को जिस पर अभी रहस्य का प्रावरण पडा था, निरावरण कर दिया । दुर्योधन की बात सुन कर शल्य आश्चर्य चकित रह गए जिस के विरुद्ध लड़ने के लिए चे पाण्डवो के पास इतनी विणा
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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