________________
२८६
.
जैन महाभारत, ।
अर्जुन बोला-'भगवन् ! मैं भी, आप ही की भाति यदा प्राप्त करना चाहता हूँ। आप त्रिखण्ड के स्वामी बने. क्योकि प्राप मे इतनी शक्ति है कि इन तमाम राजाओ को युद्ध में परास्त कर सकते हैं आप ने अपने बल से जरासिन्ध जैसे त्रिखण्ड पति को कुचल डाला। इधर मुझ मे भी इतनी शक्ति है कि अकेला ही इन सभी, को-हरादूं। मेरी चिरकाल से यह इच्छा थी कि अाप को सारस्थी बना कर अपने शौर्य से इन सभी राजाओ पर विजय प्राप्त करू । आज मेरी वह इच्छा पूर्ण हो रही है। अब मैं आप को साथ लेकर आपके समान यश प्राप्त कर सकूगा।"; . . .
श्री कृष्ण के अधरों पर मुस्कान उभर आई। बोले"अच्छा, तो - यह बात है, मुझ से ही होड करने के लिए, मुझे ही मांगा ? खैर यह तुम्हारे सद्भाव के अनुकल ही है।" 1. इस के पश्चात कुछ और बाते हुई और अन्त मे श्री कृष्ण ते।। अर्जुन को बड़े ही प्रेम से विदा किया। . , .