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________________ जैन महाभारत के लिए तैयार कर । इस प्रकार सम्भव है कि भीष्म, द्रोण, कूप, आदि दुर्योधन के हितैषियो, मन्त्रियों तथा सेना नायको मे परस्पर मतभेद होजाय । यदि उस विषय मे उन सभी में मतभेद हो जाये तो उनमे फिर एकता होना कठिन है। एकता यदि हुई भी तो उस में काफी समय लगेगा। इस समय मे उनकी तैयारिया शिथिल पड जायेगी और पाण्डव युद्ध की काफी तैयारी कर लेंगे । आप सन्धि की वार्ता इस प्रकार करे कि दुर्योधन यादि उत्तेजित न हो सके और सन्धिवार्ता में काफी समय लग जाये । इस प्रकार यदि सन्धिवार्ता सफल भी न हुई तो हमे यह लाभ पहुचेगा कि उम सम मे हम अपनी तैयारिया पूर्ण कर लेगे और दुर्योधन सन्धि वार्ता मे लगा होने के कारण अधिक न कर सकेगा। यह जानते हुए भी दुर्योधन समझौते को तैयार न होगा, हमारे शांति दूत के जाने से हमे काफी लाभ होगा ।" २८० 7 राज । महा मंत्री ने द्रुपद की सारी बाते सुनी और बोला - "महा आप विश्वास रक्ख, मैं धनराष्ट्र तथा उसके सहयोगिय को समझौता करने के लिए रजा मन्द करने में अपनी पूरी शक्ति लगा दूंगा और यदि वे समझौते के लिए तैयार न भी हुए तो उन दरार तो पड़ ही जायेगी ।" गया द्र ुपद राजा ने इस प्रकार अपने महा मंत्री को समझा बुभ कर हस्तिनापुर भेज दिया और स्वयं युद्ध की तैयारियों में ल समझौते के लिए इस प्रकार दूत भेजना और इस समझौत वार्ता की आड मे युद्ध की तैयारिया करना तथा शत्रु की तयारिय को मन्द कर देने की कूट नीति ऐसी थी जिसका अनुसरण ग्राज युग मे भी होता है। फिर भी धर्मराज युधिष्ठिर समझौते के लि हार्दिक रूप मे इच्छुक थे ।
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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