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परामर्श
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इधर पाण्डवो के समस्त सहयोगी युद्ध की तैयारियों मे लगे उधर दुर्योधन को अपने गुप्तचारो द्वारा पाण्डवो को तैयारियो का पता लग गया और उसने भी जोर शोर से तैयारिया प्रारम्भ कर दी। उसके सहयोगी भी जी जान से तैयारियो मे लग गए। अपने मित्र राजाप्रो के पास दुर्योधन की ओर से सन्देश भेजे गए और सेनाए इकट्ठी की जाने लगी। इस प्रकार सारा भारत खण्ड युद्ध के कोलाहल से गूजने लगा। राजा लोग इधर से उधर दौरे करते। सैनिकों के दल के दल जगह जगह आते जाते । सेनाओ मे वीर पुरुषो की भर्तिया खुल गई। कारीगर शस्त्र तैयार करने मे जुट गए। रथ. हाथी और घोडो को तैयार किया जाने लगा। दुर्योधन ने अपनी सेनायो का बकाया वेतन चुकना कर दिया और सैनिको को प्रसन्न करने के लिए वेतन मे वद्धि करने के साथ साथ अन्य प्रकार की सुविधाए दी जाने लगी। सारे देश मे उथल पुथल मच गई और प्रजा को यह समझते देर न लगी कि एक भयकर युद्ध का सूत्रपात हो रहा है। चारो ओर सेनाओ की भीड लग गई और पृथ्वी भिन्न भिन्न प्रकार के अस्त्रो के परीक्षणो मे काप उठी।
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द्रुपदा राजा ने अपने महा मत्री पुरोहित को बुला कर कहा"विद्वानो मे श्रेष्ठ | आप पाण्डवो की ओर से दूत बन कर दुर्योधन के पास जाए । पाण्डवों के गुणो से तो आप परिचित है ही और दुर्योधन के गुण भी आप से छिपे नही। आप को यह भी ज्ञात है कि किस प्रकार कपट पूर्वक दुर्योधन ने अपने मित्रो के सहयोग से और वृतराष्ट्र की सम्मति से पाण्डवो को जुए के लिए निमत्रित करके उनका राज्य छीन लिया। विदुर ने तो न्याय की बात कही थी, किन्तु दुर्योधन ने उसकी एक न सुनी। राजा दुर्योधन का धृतराष्ट्र पर अधिक प्रभाव है। आप वहा जाए और धृतराष्ट्र को नीति की बातें समझाए। विदूर से भी आप बातें करें। वे तो हमारे पक्ष मे रहेगे ही, सन्धि वार्ता को वे पसन्द करेंगे। भीष्म द्रोण, कृप, कर्ण ग्रादि से अलग अलग वात करके प्रत्येक को सन्धि