________________
२७८
जैन महाभारत
सभी के साथ बाल्य काल में पांचाल राज खेले है : द्राण तथा भीष्म आदि सभी के स्वभाव तथा गुणो से वे परिचित ही है और हम लोग तो उन के शिष्य वत है। अत: इस सम्बन्ध मे उनका प्रत्येक कार्य हमे मान्य होगा। अब हमे आज्ञा दी जाय कि अपनी अपनी राजधानियो को लौट जाय। क्योकि हम तो अभिमन्यु के विवाह मे ही विशेष रूप से शामिल होने आये थे। पाचाल राज इस सम्बन्ध मे जो करे और अन्तिम निश्चय जो हो, उस मे हमे सूचित कर दिया जाय ।'
___इस अवसर पर महाराज युधिष्ठिर बोले-"मैंने अब तक मभी सम्मानित वन्धुरो तथा हित पियो की बाते सुनी। आप सभी के उदगार सुन कर मुझे अनुभव हुआ कि आप सभी हमारी महायता के लिए तैयार हैं। बलराम जी ने जो भी मत व्यक्त किया, उस से हमे कोई खेद नही हया। यदि आप सभी यह अनुभव करते हो कि हमे राज्य वापिस मांगने का कोई अधिकार नही है तो हम प्रसन्नता पूर्वक अपना अधिकार छोड़ने के लिए तैयार है। परन्तु यदि आप हमारे पक्ष का समर्थन करते है तो मेरी इच्छा है कि यह मामला सन्धि वार्ता द्वारा ही मुलझ जाये। यदि दुर्योधन हम कुछ भी देने को तैयार हो तो हम युद्ध नही करेगे। फिर भी इस सम्बन्ध मे आप सभी जो निर्णय करेगे हमे स्वीकार होगा।"
अन्त मे सभी उपस्थित मज्जनो ने अपने अपने विचार प्रकट करके एक ओर सन्धि के लिए दूत भेजने और दुमरी ओर युद्ध का तैयारिया करने की राय दी। और इस कार्य क्रम का संचालन राजा उपद को सौपा गया ।
निश्चय हो जाने के पश्चात श्री कृष्ण अपने माथियो महिन द्वारिका लौट गए। विराट, द्रुपद, युधिष्ठिर आदि युद्ध का तयाग्यिा करने लग गए। चारो और दूत भेजे गा। नव मित्र गजात्रो को लेना एकत्रित करने और अस्त्र शस्त्र तैयार रखने के सन्देश भेज दिए गए। सन्देश मिलते ही पाण्डवो के पक्ष के राजा गण अपनी अपनी मेना मज्जित करने लगे।