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* तेईमवां परिच्छेद *
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श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी
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ने युद्ध की तैयारिया करने की सहायता प्राप्त पाण्डवो से सम्ब
गातिचर्चा के लिए दूत भेज देने के उपरान्त पाण्डवो की ओर से युद्ध को तेयारिया जोर शोर से होने लगी। सभी मित्र राजाओ, को युद्ध की तैयारिया करने का सन्देश भेजा जा चुका था, परन्तु श्री कृष्ण जैसे त्रिखण्डा नरेश को सहायता प्राप्त तरने के लिए केवल सन्देश ही पर्याप्त न था। क्योकि श्री कृष्ण जितने पाण्डवो से सम्बन्धित थे, उतने ही कौरवौ से। दोनों पक्ष ही उनसे सहायता माग सकते थे, अतः अर्जुन स्वय ही सहायता मागने के लिए द्वारिका
पहुंचा।
थी और उसे यहोकर द्वारिका व उन से सहासुनते ही द्वारिका
। दूसरी ओर दुर्योधन को पाण्डवों की तैयारी का समाचार मिल चुका था और उसे यह भी पता लग चुका था कि श्री कृष्ण उत्तरा
के विवाह से निवत होकर द्वारिका लौट आये हैं। इस लिये वह ! भी इस विचार से कि कहीं, पाण्डव उन से सहायता का वचन न है लेले, श्री कृष्ण के द्वारिका पहुचने का समाचार सुनते ही द्वारिका
की ओर चल पडा। सयोग की वात कि जिस दिन दुर्योधन द्वारिका पहुचा उसी. दिन अर्जुन भी वहा पहुच गया। श्री कृष्ण के भवन १ मे दोनो एक साथ ही प्रविष्ट हुए। द्वारपाल ने बताया कि श्री कृष्ण उस समय विश्राम कर रहे है। दोनो ही श्री कृष्ण के निकट सम्बन्धी होने के कारण उनके शयनागार मे भो पहुच जाने का अधिकार रखते थे। इस लिए दुर्योधन तथा अर्जुन दोनो हा