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वरना वह हमे टरकाना हो चाहता है पर आप ठहरे धर्मराज। आप ने अपनी जबान की भाति ही उसकी जबान को समझा और उसकी पर वह चाहता था कि १२ वर्ष तक तो हम चुप वास की अवधि मे
अज्ञात
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वात मान ली । चाप बनों मे पडे रहे और एक वर्ष की वह हमारा पता लगा कर १३ वर्ष के फिर एक वर्ष का अज्ञात वास करें और करते रहे । परन्तु उस की वह योजना सफल नही हुई, अब उस के पास राज्य देने से इन्कार करने के सिवाय और कोई चारा नहीं है । इस लिए अब जो कुछ आप आज्ञा दे हम वही करे ।"
परामर्श
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भीमसेन बोला- “भैया अर्जुन ठीक कहते है । तेरह वर्ष पश्चात भी हमारे सामने वही एक मात्र रास्ता है; राज्य पाने का कि हम अपने बाहुबल का प्रयोग करे । दुष्ट बुद्धि दुर्योधन इस प्रकार नही मानने वाला । इतना भला मानुस होता तो जुए मे कपट से राज्य न छीनता ।"
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बोले
युधिष्ठिर जानते थे कि उनके भाइयो का मत ग्रक्षरशः सत्य - है, फिर भी बे धर्म नीति का उल्लघन न कर सकते थे, " अभी से युद्ध की ही बात सोच लेना भूल है। हम ने जो कुछ किया उस से हमारा पक्ष दृढ हुआ और दुर्योधन को अन्यायी सिद्ध करने में अब सारा संसार हमारे पक्ष का समर्थन करे हम सफल हुए । गा। इस लिए किसी निष्कर्ष पर पहुचने से पूर्व हमे अपने सहयोगियो, मित्रो तथा सम्बन्धियो से परामर्श करना चाहिए। बिना कुछ कर भी तो नही सकते ।" - महाराज हम उनकी सहायता युधिष्ठिर ने कहा ।
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आप ठीक कहते हैं राजन् हमें सहयोगियों से मंत्रणा करनी चाहिए "
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लिए और बनो मे भेज दे । इसी प्रकार हम जीवन भर
अपने स्नेही मित्रों तथा नकुल वोला ।
सहदेव ने भी उस समय अपनी राय प्रकट करते हुए कहा
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मेरा विचार है कि अब समय नष्ट करने से कोई लाभ नही हमे
अपने सभी मित्रो - कृपालु सहयोगियो विचारवान तथा विद्वान सम्बन्धियो को बुला कर परामर्श करना चाहिए और वे जो कुछ कहें वैसा ही करना उचित है । '