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पाण्डव-प्रकट हुए
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और जब उनकी नजर उन पाचो (पाण्डवो) पर पडी। उन के कोष का ठिकाना न रहा। रोम रोम मे चिनगारिया जल उठी। डो कठिनाई से वे अपने को नियन्त्रित कर पाये। जी मे आया के वे उन से इस धष्टता के लिए सारे दरवार के सामने ही उत्तर सागे और दण्ड स्वरूप धक्के देकर वहा से निकलवा दे। पर उसी पमय उन्हे उन पाचो की सेवायो का ध्यान आया। उन्हे सुशर्मा के मुकाबले पर इनका पराक्रम'स्मरण हो आया। इस लिए वे स्वय अपने पासन से उठे और उनके पास जाकर पूछा
आप लोग जानते है कि यह आसन किन के लिए है ?" भीमसेन बोल उठा--"जी।" "तो फिर आप लोग इन आसनो पर कैसे आ बैठे ?" क्यों कि यह हमारे जैसो के लिए ही हैं।" -भीम ने उत्तर
दिया।
"क्या आप लोग नहीं जानते कि यह राज कुमारो के बैठने का स्थान है ?"
'ज्ञात है ." __ "तो फिर आप का यह साहस कैसे हुआ कि सेवक होकर राज कुमारो का स्थान ग्रहण करे "
"क्यों कि हमे इन स्थानो पर बैठने का अधिकार है।" वह कैसे ?"-आवेश में आकर राजा ने पूछा। "हम राजकुमार जो ठहरे "-भीम बोला। "दिमाग तो खराब नही हुआ ?"
'दिमाग खराव हो हमारे शत्रुओं का। हम तो अपना स्थान स्वय पहचानते है।"
"मैं आप लोगो की सेवायो से सन्तुष्ट है। इस लिए आप को