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जैन महाभारत
अभूतपूर्व ही था।
नगर के मुख्य व्यक्ति अपने अपने लिए नियुक्त आसनो प विराज मान थे कि कक, बल्लभः ततिपाल, ग्रथिक और बृहन्नल ने सभा स्थल में प्रवेश किया। सभी उपस्थित लोगो की दृष्ि उन पाचो की ओर गई। वे सभा मे उपस्थित लोगों, नगर प्रमुख व्यक्तियो, राज्य कर्मचारियो, सेना, नायको तथा अर उपस्थित प्रतिष्ठित लोगो के बीच से निकलते हुए राजकुमारो । -नियत आसनो पर जा बैठे। इस बात को देख कर सभी उपस्थि सज्जनो मे खलबली सी मच गई। यह एक अनहोनी घटना थी कहा सेवक और कहा राज कुमार ? राजकुमारो के यासन प सेवको के वैठ जाने से सभी का आश्चर्य स्वभाविक ही था। सः आपस में कानाफूसी करने लगे। कोई उनकी आलोचना कर रह था तो कोई कह रहा था- “भई, इन लोगो की सेवाओ से राज वहुत प्रसन्न होगे। क्या पता सुशर्मा को परास्त करने मे इन । मिले सहयोग तथा युद्ध मे इनकी वीरता से प्रसन्न होकर राजा उन्हे इस आसन पर बैठने की अनुमति दे दी हो। राजाओ क क्या है जिसको सम्मानित करना हो उसे किसी प्रकार भी मम्मा , दे सकते है।"
परन्तु उन पाँचो के इस प्रकार निर्भय होकर राजकुमारा' स्थानो पर बैठ जाने से सभी उपस्थित व्यक्ति उनके विषय में कुछ न कुछ चर्चा अवश्य ही करने लगे। पर वे थे कि अपने आमन पर ठाठ से बैठे थे। मानो वे उन पर बैठने के पूर्ण रुपेण अधि कारो हो।
कुछ ही देर बाद चोवदारों ने आवाज लगाई - "सावधान ''अनुशासन, मत्स्य राज्य के नरेश यशस्वी, कर्मवीर, न्यायी, प्रताप. विराट महाराज पधार रहे है।' सभी उपस्थित व्यक्ति उनके सम्मान में सिर का कर खडे होगए। राजा पाये और उपस्थित सज्जना का अभिवादन स्वीकार करके अपने लिए नियतं उच्च आसन पर विराजमान हए। समस्त लोग अपने अपने ग्रासनो पर बैठ गए। सजा ने चारो ओर विराजित निमश्रित व्यक्तियो पर दृष्टि डाला।