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. जैन महाभारत
था कि कक वास्तव मे कौन है। बोला-पिता जी! आपने इन धर्मात्मा के साथ यह व्यवहार करके घोर पाप कर डाला। ऐसा - पाप किया है आप ने कि इसका फल आपको क्या भोगना होगा, मैं नही जानता कि यह दास रूप मे आज भले ही है,पर वह हैं:एक महान आत्मा। आप अभी ही इनके पैर पकड़ कर क्षमा याचना कीजिए, अपने किए पर पश्चाताप कीजिए, वरना ऐसे शुभ कर्मों वाले महा पुरुष के साथ अन्याय करने के फल स्वरूप, सम्भव है हमारा वश ही समाप्त हो जाये।"
पुत्र की बात सुन कर राजा को बडा आश्चर्य हुआ ! अपने से कंक के प्रति ऐसी पुत्र की भावना का रहस्य उनकी समझ मे न आया । बोले-"तुस कैसी बातें कर रहे हो। मेरी तो समझ मे कुछ नहीं आता। कक भले ही विद्वान हो पर इस का यह अर्थ तो नही कि अपने स्वामी की बातो को झटलाए और तुम जैसे वीर के शौर्य को एक हीजड़े के सामने नगण्य सिद्ध करे।" ।
"पिता जी! आप नही जानते कि कंक कौन है। जब • आप जानेंगे तो स्वयं लज्जित होंगे। आप मेरे कहने से ही इन से क्षमा याचना करें।"
उत्तर की बात सुनकर राजा सोच में पड़ गए। परन्तु जब से उन्होंने राजकुमार की कौरव वीरो पर विजय का समाचार सुना • था तभी से वे राजकुमार का हृदय से आदर करने लगे थे. इस लिए जब वार वार उत्तर ने आग्रह किया तो उन्होने कक से क्षमा याचना - को।
__ रोजा विराट ने बड़े प्रेम तथा आदर से उत्तर को अपने पास विठा लिया और बोले - "वेटा ! अब तुम बताओ कि तुमने कोरव वीरों के साथ कैसे युद्ध किया? उन्हे कसे परास्त किया ? युद्ध म क्या क्या हया? मैं तुम्हारी वीरता की सारी कथा सुनने की लालायित हूं।"
उत्तर ने कहा-"पिता जो! वास्तविकता यह है कि मन