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पाण्ड470
पोछा गया था, रक्त से तर हो गया। तब पास ही मे रक्खे एक सोने के प्याले मे उस ने रक लेना प्रारम्भ कर दिया, ताकि रक्त की धारा फर्श तथा कपडो को न खराब करदे। यह देख राजा विराट ने प्रावेश मे आकर कहा "सौरन्ध्री। यह क्या कर रही है । सोने के प्याले मे रक्त भर रही है ? क्यो ?” । - सौरन्ध्री बोली- “राजन् । आप नहीं जानते कि आप ने
-कितना भयकर अनर्थ कर डाला। जिनके बदन से रक्त बह रहा है, वे कितने महान व्यक्ति हैं, आप को नही मालूम। यह इसी योग्य है कि इनका रक्त सोने के प्याले में लिया जाय ।
राजा विराट को सौरन्ध्री की बात अच्छी न लगी। वे दात पीसने लगे। उस समय एक दूत ने पाकर सूचना दी कि राजकुमार उत्तर रण भूमि से वापिस पागए हैं। और उसी समय राजा ने स्वय राजकुमार के स्वागत मे वजा रहे मागलिकवाद्य यत्रो की ध्वनि सुनी। जय जयकार की ध्वनि गंज रही थी। और बाजों के स्वर चारो ओर सुनाई दे रहे थे। राजा उल्लास पूर्वक अपने बेटे का स्वागत करने के लिए उठ और बाहर चल दिए, परन्तु उसी समय राजकुमार उत्तर वहां पहुच गया। उसने पिता को सादर प्रणाम किया। राजा ने उसे अपनी छाती से लगा लिया।
राजकूमार की दृष्टि कक की ओर गई। उनका मह लहलुहान देख कर उस ने कहा-"पिता जी ! इन्हे क्या हया? "वेटा! तुम्हारी विजय की सूचना पाकर जब हम अपना हादिक उल्लास प्रकट कर रहे थे, उस समय यह महाशय बार वार बृहन्नला 'की प्रशसा के पुल बाध रहे थे। इन का विचार था कि विजय बृहन्नला के कारण हुई, इस मे तुम्हारी वीरता का कोई हाथ नही। जव यह बात सुनते सुनते मेरे कान पक गए तो मैंने इनकी जबान बन्द करने के लिए आवेश मे आकर इनके मुहापर पासा फेक दिया। बस उसी से रक्त चह निकला। और कोई बात नहीं है ."-राजा ने कहा । ।
पिता की बात सुनकर राजकुमार उत्तर भय के मारे कांप उठा। उसकी चिन्ता की सीमा न रही। क्योकि वह तो जानता