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जैन महाभारत
और खेलते समय भी बाते होने लगी ।
विख्यात कौरव वीरो को
" देखा, राजकुमार का गौर्य ? अकेले मेरे बेटे ने ही परास्त कर दिया । भीष्म, द्रोण, कृप, कर्ण और दुर्योधन, अहा, हा, हा सब की वीरता, ख्याति तथा निपुणता धरी की धरी रह गई - विराट ने कहा ।
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" नि. सन्देह आप के पुत्र भाग्यवान है. नही तो उन्हे वृहन्नला . जैसी सारथी कैसे मिलती ? राजकुमार की वीरता, और उस पर भी वृहन्नला जैसी सारथी का साथ, दोनो ने मिल कर कौरवो का अभिमान भंग कर डाला - "कक बोले |
विराट भुला कर बोले - " ब्राह्मण | आपने भी क्या बृहन्नला वृहन्नला की रट लगा रखी है ? मै अपने महावीर राज कुमार की बात कर रहा हू और आप हैं कि उस हीजडे के सारथीपन की बड़ाई कर रहे हैं ।"
कक ने गम्भीरता पूर्वक धीरज से कहा - " राजन् | आपको सत्य के मानने मे कोई आपत्ति नही होनी चाहिए। बृहन्नला को प्राप साधारण सारथी न समझे वह जिस रथ पर बैठेगी उस पर कोई साधारण से साधारण रण योद्धा चाहे क्यो न सवार हो, पर विजय उसी की होगी। आज तक उसके चलाए रथ पर युद्ध मे जाकर कोई विजय प्राप्त किये लौटा ही नही । यह उसके शुभ कर्मों, ज्ञान तथा निपुणता का प्रभाव है, जिसे वे सभी मानते हैं जो उसकी वास्तवि-कता से परिचित है।"
कक की बात पर राजा विराट को बहुत क्रोध आया और उसने अपने हाथ का पासा कक (युधिष्ठिर) के मुह पर दे मारा और बोला -कक 1 खबरदार जो फिर ऐसी बाते की । जानते हो तुम किस से बाते कर रहे हो ?
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पांसे की मार से युधिष्ठिर के मुख पर चोट आई और खून बहने लगा । सौरन्ध्री उस समय वहा उपस्थित थी, उस ने जब कक (युधिष्ठिर) के वदन से रक्त बहते देखा तो दौड़कर अपनी साड़ी से उसे माफ करने लगी । पर साडी का वह कोना, जिस से रक्त