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पाण्डव प्रकट हुए
बन्दियो को मुक्त कर दो। नगर वासियो से कहो कि वे दीप राज प्रसाद का शृंगार कराओ और
मालिका का उत्सव मनाए । राजकुमार का अभूत पूर्व स्वागत करो।"
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मन्त्रियों ने ग्राज्ञा पाकर समस्त प्रबन्ध कर दिया ।
कक ने उस समय कहा - 'राजन् । देखिये मैंने कहा था ना, कि राजकुमार के साथ बृहन्नला है तो फिर आपको चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। बृहन्नला के होते कौरव वीरों की क्या मजाल कि जीत सके । श्राप नही जानते राजन् । कि बृहन्नला रण कौशल मे कितनी प्रवीण है। वह तो शत्रुओ के लिए पराजय का सन्देश समझिए ।"
किन्तु विराट तो अपने लाडले के पराक्रम पर गर्व कर रहे थे, उन्होने कहा - " कक, बृहन्नला तो नपुंसक है, उसे रण कौशल .. की क्या तमीज और यदि वह कुछ जानती भी हो तो भो उसे तो रथ ही हाकना था, युद्ध तो राजकुमार ने ही किया होगा । विजय मे बृहन्नला का क्या हाथ है ?
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" राजन् ! मैं फिर कहता हू बृहन्नला के सामने तो देवराज इन्द्र तथा श्रीकृष्ण के सारथी भी नही ठहर सकते 1 और यदि कही युद्ध मे उसके मुकाबले पर देवता भी उतर श्राये तो भी विजय बृहन्नला की हो। उसी महाबली बृहन्नला के कारण आपके पुत्र की विजय हुई - " कक ने बृहन्नला को विजय का श्रेय देते हुए जोरदार शब्दों मे कहा ।
"नही, नही. शिशु सिह उत्तर का मुकाबला अब कोई नही कर सकता, यह प्रमाणित हो गया- “राजा विराट ने कहा और तभी एक दासो को बुला कर उन्होने कहा - "आज हम बहुत प्रसन्न हैं। यह समझ मे नही आता कि हम अपनी प्रसन्नता को कैसे प्रकट करें । जाम्रो जरा चौपड़ की गोटे तो ले आओ, इस खुशी मे कक से दो दो हाथ ही हो जायें I आज खुशी के मारे मैं पागल हुआ जा रहा हू । "
दासी ने तुरन्त श्रादेश का पालन किया। दोनों खेलने बैठ गए