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जैन महाभारत
- कितनी भी हो अवेला चना-क्या भाड- फोडेगा?"
इसी प्रकार कक तथा राजा के मध्य वार्ता चल रही थी कि उत्तर का भेजा हुआ समाचार मिला-"राजन् । आप का कल्याण हो। राजकुमार जीत गए। कौरव सेना भाग गई। गाये छुडा लो गई।'
यह सुन कर विराट पाखे फाड कर देखते रह गए। उन्हे विश्वास ही न होता था कि अकेला उत्तर सारो कौरव सेना को जीत सकेगा। वह अपने पुत्र के वास्तविक बल को जानते थे। 'और उन्हे यह भी विश्वास था कि जिस सेना का संचालन जगत विस्मात रण विद्या शिक्षक गुरू द्रोणाचार्य, देवता स्वरूप महान तेजस्वी भीष्म, साहसी रण कुशल कृपाचार्य महाबली दुर्योधन और असीम साहस के धारणकर्ता दानवीर कर्ण के हाथो में हो उसे परास्त करना, असम्भव को सम्भव कर दिखलाने के समान है। वे जानते थे कि यह वीर अर्जुन के अतिरिक्त और किसी के बस की बात नहीं है परन्तु उन्होने अपने कानो से ऐसी बात सुनी थी, जिस पर कदाचिन कोई विश्वास न करेगा। इस लिए उन्हे अपने कानो पर अविश्वास होने लगा।
__ पूछ बैठे-"क्या कहा ? क्या मेरे पुत्र उत्तर ने कौरव वीरो को परास्त कर दिया ? क्या यह सही है ?"
-दूत बोला "जी महाराज! आप के राजकुमार ने कौरव सेना को मार भगाया। युद्ध मे भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण, विकर्ण, दुर्योधन विविंशति, दु शासन, दुसह आदि सभी महारथी बुरी. तरह घायल हुए। उन्हो ने जितनी गौए हाक ली थी, सभी छुडा ली गई और अव राजकुमार कौरव वीरो के वस्त्र हरण करके विजय पताका फहराते हुए नगर लौट रहे है ."
राजा विराट इस समाचार को पुन सुन कर मारे उल्लास के उछल पड़े और अपने मन्त्रियो को सम्बोधित करते हए वोलेजायो राजकुमार के स्वागत के लिए सारा नगर दुल्हन की भाति सजवा दो। निर्धनो को मुह मांगा दान दो। जेलो मे सड़ रहे