________________
पाण्डव प्रकट हुए
२५५
4-+
पढा। कहा कौरवो की विशाल सेना, उसके यशस्वी रणकुशल वीर सेनानी और कहा मेरा सुकोमल प्यारा पुत्र ? अब तक तो वह कभी का मृत्यु के मह में पहुंच चुका होगा। इस मे कोई सन्देह ही नही है ।"-कहते कहने बूढे राजा का कण्ठ रु ध गया।
स्त्रियो को यह देख कर बडा ही आश्चर्य हुअा ।
राजा ने अपने मत्रियो को आज्ञा दी कि सारी सेना ले जाय और यदि राजकुमार जीवित हो तो उसे सुरक्षित यहा ले आये । मन्त्रियो ने तुरन्त आदेश का पालन किया। सेना चल पड़ी, राज कुमार को खोजने :
राजा का हृदय पुत्र प्रेम मे फटा जाता था, वे बडे बेचैन थे। उन्होने कहा-"हाय । दुख एक साथ किस प्रकार टूटा है कि उधर सुशर्मा ने आक्रमण किया और इधर कौरवो ने। मैं तो किसी प्रकार वच आया पर हाय मेरा पुत्र मेरे हाथों से गया।"
इस प्रकार शोकातुर होते देख कर सन्यासी वेष धारी कक ने उन्हे दिलासा देते हुए कहा- “आप राजकुमार की चिन्ता न करे। वृहन्नला सारथी बन कर उन के साथ गई हुई है। उसे आप नही जानते, मै भलि भाति जानता हू। जिस रथ की सारथी बृहन्नला . होगी, उस पर चढ कर कोई भी युद्ध मे जाय, उसकी अवश्य ही जीत होगी। इस लिए आप विश्वास रक्खे, राजकुमार विजेता होकर ही लौटेंगे। इसी बीच सुशर्मा पर आपकी विजय का समा-- चार पहुंच गया होगा, उसे सुन कर भी कौरव सेना मे भगदड़ मच.. गई होगी। आप चिन्ता न करें।" ___"नही, कक ! मेरा बेटा अभी बडा कोमल है, वह इतने वीरो के सामने भला क्या कर सकता है। और बृहन्नला कुछ भी क्यो न हो, है तो हीजडा ही। उस के बस की क्या बात है।" राजा ने कहा।
"पाप क्या जाने ? बृहन्नला कितनी रणकुशल है ?" ..