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* इक्कीसवां परिच्छेद *
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पाण्डव प्रकट हुए
पाराडवप्र
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जब राजा विराट चार पाण्डवों की सहायता से विगत-राज मुशर्मा को परास्त करके नगर मे वापिस आये तो पुरवासियो ने उनका बडी धूमधाम से स्वागत किया। सारा नगर सजा हुआ था, जिधर से सवारी निकली पुप्प तथा मुद्राओ की वर्षा हुई। लोगो ने जय जयकार मनाई। विरुदावली गाई गई। अन्त.पुर मे तो उनका बहुत ही उल्लासपूर्ण स्वागत किया गया। पर जब उन्होने गजकुमार उत्तर को वहा न पाया तो उस के बारे में पूछ नाछ क । स्त्रियों ने बताया कि राजकुमार कौरवो से लडने गए है। उन स्त्रियों की प्राखो मे तो गजकुमार उत्तर कौरव सेना की कौन कहे सारे विश्व पर विजय पाने योग्य था, और इसी लिए वडे उल्लास से उन्होने राजा को यह शुभ समाचार सुनाया था परन्तु राजा तो इस समाचार को सुन कर ही एक दम चौंक पड़ । उनके विशेष पूछने पर स्त्रियो ने सारा वृत्तात, कौरव सेना का आक्रमण, गाए चुराना, ग्वालो की टेर, और वहन्तला को सारथा वनावर राजकुमार उत्तर का युद्ध के लिए जाना यह सभी कुछ
वताया।
राजा चिन्तित हो उठे। दुखी होकर बोले - "राजकुमार उत्तर ने एक हीजडे को साथ लेकर यह बड़े दुस्साहस का कार्य किया है। इतनी बडी सेना के सामने पाखं मूद कर ही कूद