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* बीसवां परिच्छेद *
दुर्योधन की पराजय
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उस ने कान
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. इस प्रकार
भीष्म जी सग्राम का मुहाना छोड कर रण से बाहर हो गए, उस समय अर्जुन का रथ दुर्योधन की ओर बढा । दुर्योधन भी क्रुद्ध होकर हाथ मे धनुष के ऊपर चढ आया । ले अर्जुन + तक धनुष खीच कर अर्जुन के ललाट मे तीर मारा. और वह बाण = ललाट मे घुस गया, जिस से गरम गरम रक्त की धारा बह निकली । अर्जुन के ललाट को ही चोट नही पहुची, बल्कि उस के मान को भी ठेस पहुची। उसकी भुजाओ का रक्त उबल पडा और विषाग्नि के समान तीखे बाणो से दुर्योधन को बीधने लगा । दोनो मे भीषण युद्ध होता रहा । तत्पश्चात अर्जुन ने एक पैने बाणद्वारा दुर्योधन की छाती बीध डाली और उसे घायल कर दिया । तभी दुर्योधन के अग रक्षक वीर चारो ओर से टूट पड़े परन्तु अर्जुन ने सभी मुख्य मुख्य योद्धाओ को मार भगाया । " योद्धाओ को भागतेदेख दुर्योधन ने सभल कर आवाज लगाई - "वीरो । भागते क्यो हो ? ठहरो में अभी ही इस दुष्ट को ठिकाने लगाता हू । ठहरो, हम सब मिल कर इसे मार भगायेंगे ।" तभी अर्जुन ने एक दिव्यास्त्र छोड़ा जिससे चारो ओर घुआ ही धुआं छागया ! इस अद्भुत पराक्रम को देख कर कौरव वोरो के और भी पाव उखड गए और वे दुर्योधन को चिल्लाता छोड कर अपने प्राणो की रक्षा के लिए भागते ही रहे । तब दुर्योधन ने अपने को अकेला पाया और उसी समय अर्जुन ने एक ऐसा अस्य प्रयोग किया कि आग की लपटे
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