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________________ २४८ जैन महाभारत - युद्ध ठाना है, वह बडा ही- दुष्कर कार्य है। अर्जुन वलवान है, करुण है रण कुशल कोर फुर्तीला है, तभी तो डटा हुआ है, वरना कौन है जो भीष्म जी के प्रहारो के आगे इस प्रकार ठहर सके।" उस समय अर्जुन तथा भीष्म दोनो ने ही प्राजापत्य, ऐन्द्र, प्राग्नेय, रौद्र, वारुण, कौबेर, याम्य और वायव्य, आदि दिव्या स्त्रो का प्रयोग कर रहे थे। कभी भीष्म जी किसी अस्त्र से अग्नि वर्षा करते तो उसके उत्तर मे अर्जुन.बिना मेंघ के ही सावन भादों सी झडी लगा देते,. वर्षा होने लगती और भीष्म जी-एक अस्त्र मार कर उस वर्पा को तुरन्त वायु के वेंग से समाप्त कर देते.। कभी अर्जुन मूछित कर डालने वाला अस्त्र चलाता- तो भीष्म जी उस की प्रभावहीन करने के लिए कोई अस्त्र प्रयोग करके तुरन्त ऐसा वाण मारते कि चारो ओर धूल ही धूल के बादल दिखाई पडते। __अर्जुन तथा भीष्म जी सभी अस्त्रो के ज्ञाता थे। पहले तो इन मे दिव्यास्त्रो का युद्ध हा. इसके बाद वाणो का सलाम छिड़ा। अजुन ने भीष्म का सुवर्णमय धनुष काट डाला। तब महारया भीष्म जी-ने-एक ही-क्षण मे दूसरा धनुष लेकर उस पर प्रत्यका चडा दा और क्रुद्ध होकर वे अर्जुन के ऊपर बाणो की - वर्षा करने लगे। एक वाण- अर्जुन की वायी पसलीः मे लगा। परन्तु- अर्जुन के मह कोई चीत्कार न निकला। उस ने हसते हए तीखी- धार वाला एक वाण मारा, और भीष्म जी का धनुष दो टुकड़े. हागया। उसक बाद दस-वाण मार कर भोज्म-जो को छाती पर प्रहार किया, छाती पर कवच-टूट गया और भीष्म जी.का इतनी पीड़ा हुई कि वे रथ का कूवर थाम कर देर तक बैठे रह गए। भीष्म जी.को अचेत जान कर मारथी को अपने कर्तव्य की याद आ गई और वह रथ को युद्ध भूमि से दूर ले गया । DE
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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