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कौरको के वस्त्र हरण
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| पड गया, सारीत होगए, इससे हुए भी मृत
लिए दूर ले गए। और जिसका कभी निशाना गलत न बैठता था, वह अर्जुन सेना मे चारो ओर प्रहार करने लगा। . धनजय के ऐसे पराक्रम को देखकर दुर्योधन की सेना के रोष रहे सभी वीर चारो ओर से अर्जुन पर टूट पड़े और एक साथ ही वाण चलाकर अर्जुन को इतना अवसर न दिया कि वह किसी पर वाण चला सके। अनेक स्थानो पर उस का कवच टूट गया पौर उसके शरीर मे कई घाव होगए परन्तु वीर अर्जुन तनिक सा भी हतोत्साहित न हुआ। उसने तुरन्त ही एक ऐसा बाण मारा, जो मेघाच्छादित आकाश मे कोधती बिजली की भाति चमका और उस के प्रभाव से कौरव वीर बेहोश होने लगे। कहीं आग सी बिखरी और कही दुगध ने वीरो को घेर लिया। घबरा कर कुछ वीर . प्राण लेकर वहा से भाग खड़े हुए। कुछ जीवित होते हुए भी मृत समान गिर पड़े। हाथी तक मूछित होगए, इस से सभी कौरवो का उत्साह ठण्डा पड़ गया, सारी सेना तितर बितर होगई और साहसी वीर तक निराश होकर इधर उधर चारो ओर भाग पडे ।
यह देखकर शान्तनुनन्दन भीष्म जी ने अपने सुवर्णजटित धनुष और मर्म भेदी बाण लेकर अर्जुन पर धावा कर दिया। सब से पहले उन्होने अर्जुन के रथ पर फहराती ध्वजा पर फुफकारते हुए सर्पो के समान आठ बाण मारे। जिससे ध्वजा तार तार हो गई। अर्जुन ने इस प्रहार के उत्तर मे एक लम्बे भाले से भीष्म
जी का छत्र काट डाला, वह कटते ही भूमि पर आ गिरा और फिर , उनके सारथी को, घोडो को, ध्वजा को और पार्श्व रक्षकों को घायल १ कर दिया। भीष्म पितामह भला कैसे सहन कर सकते थे कि कोई हा उनके सामने आकर उनके रथ, सारथी, घोडो आदि को घायल कर कि दे और उसका कुछ भी न बिगड़े. उन्होने क्रुद्ध होकर दिव्यास्त्रो
का प्रयोग करना आरम्भ कर दिया। इन के उत्तर मे अर्जुन ने ए भी दिव्यास्त्र प्रयोग किये । और इस प्रकार दोनों मे बडा रोमाच____ कारी युद्ध होने लगा। दुर कौरब भीष्म जी के रण कौशल को देखकर उनकी प्रशसा हान करते हुए कहने लगे- 'भीष्म जी ने अर्जुन के साथ जो भयकर