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________________ २४६ जैन महाभारत युद्ध कर सकों। तुम ने अब तक जो साहस दर्शाया है वह प्रशस नीय है " . इस प्रकार अर्जुन ने उत्तर को. धीरज, बधाया। और फिर उत्तर साहस पूर्व के रथ को उसी ओर ले चला, जिधर भीष्म पितामह अपने अग रक्षको, सहयोगियो तथा साथी योद्धाओ के बीच खडे थे, अपनी ओर अर्जुन को आते देख कर निष्ठुर पराक्रम दिखाने वाले शातनु नन्दन भीष्म जी ने बड़े बेग से अर्जुन पर - वाण वर्षा-प्रारम्भ करके धीरता पूर्वक उसकी गति रोकदो। अर्जुन उन के बाणों को बीच ही मे काटता रहा. और कुछ ही देरी बाद एक ऐसा बाण मारा कि भीष्म जी के रथ की ध्वजा कट कर गिर पड़ी इसी समय महाबली दुशासन, विकर्ण, दु सह. और विविंशति इन चार ने आकर धनजय को चारो ओर से घेर लिया। दुशासन में एक बाण से विराट नन्दन उत्तर को बीधा और दूसरे से अर्जुन के छाती पर चोट की। इस से ऋद्ध होकर धनजय ने एक ऐसा तीख बाण मारा जिस से दुःशासन का सुवर्ण जटित धनुष काट दिया और फिर एक के बाद दूसरा तडातड पाच बाण उसकी छाती को निशा ना बनाकर मारे। उन पाच पैने बाणो की मार से कराहता हुआ दुशासन युद्ध छोड कर भाग खडा हग्रा। परन्तु तभी विकण अर्जुन पर बारा वर्षा करने लगा। कुछ समय तो अर्जुन ने उसक प्रहार मे अपनी रक्षा करने के लिए ही गाण्डीव का प्रयोग किया, पर एक वार उस के ललाट पर अर्जुन ने एक तीखा बाण मारा, जिसके लगते ही घायल होकर विकर्ण रथ से गिर पड।। तदनन्तर दुसह और विविति अपने भाई का वदला लेने के लिए अर्जुन पर वाणो की वर्षा करने लगे। पर दोनो के एक साथ प्रहार से भा अर्जुन तनिक मा भी विचिलत न हा. उस ने कुछ देर अपनी रक्षा की ओर दांव लगा कर ऐसे बाण चलाये, जो उन दोनी के वाणा को तोडते हए उस के घोडो, सारथी और स्वय उनके शरोग का बीधने में सफल हुए। · · वीर अर्जन द्वारा चलाए गए वाणो से जब दुसह आर विविंशति के घोड मारे गए और उनका शरीर लोहू-लुहान हागया तो उनके सेवक उन्हे युद्ध भूमि से हटा कर उचित चिकित्सा ,
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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