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________________ कौरवो के वस्त्र हरण ......... २४५ . . फिर अर्जुन ने उत्तर को लक्ष्य करके कहा- "जिस रथ पर मुवरामिय ताड के चिन्ह वाली ध्वजा लहराती है, उसी ओर मुझे ले चलो। वह मेरे पितामह भीष्म जी का रथ है, जो देखने मे देवता के समान जान पंडते है, परन्तु मेरे साथ युद्ध करने के लिए पधारें है।" - उत्तर का शरीर वाणो से घायल हो चुका था। परन्तु अभी तक वह किसी प्रकार यह सब घाव सह रहा था, क्योकि इस बात हो ने कि वह वीर 'अर्जुन का रथ हा के रहा था, एक असीम साहस भर दिया था। फिर भी उस समय वह काफी शिथिलता अनुभव कर रहा था। बोला-"वारवर | अब मै आप के घाडी पर नियन्त्रण नहीं रख सकता। मेरे प्राण सन्तप्त है, मन घबरा रहा है। आज तक कभी भी मैंने इतने वीरों को युद्ध रत नहीं देखा था। आप के साथ जब मैं इतने वीरों को लडते देखता हूँ तो मेरा हृदय विचलित हो जाता है। गदाओं के टकराने का शब्द, शग्वो की उच्च ध्वनि, वीरों का सिंहनाद, हाथियो की 'चिधाड तथा बिजली की गड गडाहट के समान गाण्डीव की टकार सुनते सुनते मेरे कान वहरे हए जाते है, स्मरण शक्ति क्षीण हो रही है। अब मुझ मे चावुक और बागडोर सभालने की शक्ति नही रह गई है।" अर्जुन ने उसे धैर्य वधाते हुए कहा-"नरश्रेष्ठ, डरो मत, तुम राजाविराट की वीर सन्तान हो। तुम पराक्रमी हो, मत्स्य नरेश के सर्व विख्यात वश के रत्त हो। सावधान होकर बैठे रहो धीरज रख कर घोडो पर नियन्त्रण रक्खो। वस थोडी देरी की बात और है मैं शीघ्न ही समस्त शत्रुयो पर विजय प्राप्त कर लूगा और फिर विजय पताका फहराता हग्रा गजध नी लौटगा। लोग जानेंगे कि करिव सेना पर विजय प्राप्त करने वाले यशस्वी एव पराक्रमो वार तुम्ही हा। फिर माग नगर तुम्हारी जय जयकार मनायेगा। राजा तुम्हारी वीरता को सुनकर गद गद हो उठेगे। देखो इतना बडा मान वस थोडे समय मे हो तुम्हे मिलने वाला है। तुम देखते जागो मकसे तीर चलाता ह, कैसे दिव्यास्त्रो का प्रयोग करता हूँ सभी का गहरो. दृष्टि से देवो, ताकि तुम भो भविष्य मे इसी प्रकार
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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