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. जैन महाभारत
उनकी बुरी गत होने लगी। हाथ पाव कांप उठे। यह देखकर अश्वस्थामा आगे बढा और अर्जुन पर बाण बरसाने लगा। अर्जुन । स्वयं नहीं चाहता था कि उसके हाथो गुरुदेव द्रोणाचार्य के सान कोई अशुभ घटना घटें, इस लिए उनकी ओर से हटकर अश्वस्थामा की ओर ध्यान प्रकट करके उसने द्रोणाचार्य को खिसक जाने के लिए मौका दे दिया। प्राचार्य भी ऐसे अवसर को खोना न चाहत थे, बह सुअवसर समझ शीघ्रता से खिसक गए।
उनके चले जाने के पश्चात अर्जुन अश्वस्थामा पर टूट पड़ा। दोनों मे भयायक युद्ध होता रहा। द्रोणाचार्य के दोनो ही शिष श्रे, और अश्वस्थामा तो ठहरा उनका पुत्र! पर अर्जुन के आचार्य ने पुत्रवत शिक्षा दी थी। दोनो हो धुरन्धर योद्धा थे इस लिए प्रत्येक एक दूसरे को पछाडने के लिए प्रयत्न शील रहा परन्तु जब अर्जुन ने गाण्डीब द्वारा दिव्यवाणो की वर्षा प्रारम्भ का तो अश्वस्थामा के लिए मुकाबले पर टिक पाना असम्भव होगया -और कुछ ही देर मे अश्वस्थामा परास्त होगया।
- तव कृपाचार्य की बारी आई। वे जाते ही क्रुद्ध होक अर्जुन पर टूट पडे। पर जिस वीर ने द्रोणाचार्य का साहस है । लिया था उसके सामने बेचारे कृपाचार्य क्या कर सकते थे। व पूरी शक्ति से लडे। जो भी अस्त्र शस्त्र उनके पास थे, पूरी शक्ति से उन्हे प्रयोग किया। परन्तु जब तक वे स्वय अपने सभी अस्त्र शस्त्रों को अदल बदल कर प्रयोग नही कर चुके, अर्जुन ने अपना वार न किया। अन्त में कुछ देर के लिए अर्जुन ने अपने अस्त्र आक्रमण के रूप मे प्रयोग किए और कृपाचार्य हार खा गए।
___ अंर्जुन को युद्ध कला की अच्छी शिक्षा मिली थी और था उस में अद्मत बल। वह निशाना मारने मे कभी चूकता नहा था, उसके हाथो मे बडी फुर्ती थी और उसके बाण, बहुत दूर तक मार कर सकते थे। जिसके कारण वह अपने शत्रुओं के बाणी का अप पास तक पहचने से पहले बीच हो मे तोड डालता था। अतए वह उन सभी वीरों को परास्त करने में सफल हुन्ना ओ.उम सामने आये। ,