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जैन महाभारत
हो जाओ "~ भीष्म पितामह ने अपनी राय प्रकट करते है कहा।
दुयोधन ने बात टालना ही लाभ प्रद जानकर कहा- "पितामह । शत्रु हमारे सिर पर खडा है; और हम ऐसे समय युद्ध करके सन्धि की वात चलाए यह अच्छी बात नहीं है। आप इस समय तो युद्ध की ही योजना बनाइये।"
यह मुन द्रोणाचार्य बोले- भीष्म जी की राय ठीक होते हुए भी चूंकि हम तुम्हारी सहायता के लिए आये है, इस लिए तुम्हारी इच्छा पूर्ति के लिए हमारा कर्तव्य है हम युद्ध की योजना बनाये। अच्छा तो फिर सेना का चौथाई भाग अपनी रक्षा के लिए साथ लेकर दुर्योधन हस्तिना पुर की ओर वेग से कूच करदे। एक हिस्सा गायो को भगा ले जायें। शेष जो सेना रहेगी उसे हम पांच महारथी साथ लेकर अर्जुन का मुकाबला करे । ऐसा करने से ही राजा की रक्षा हो सकती है।'
प्राचार्य की योजना कुछ वाद विवाद के पश्चात स्वीकृत हुई और फिर उनकी प्राज्ञानुसार कौरव वीरो ने व्यूह रचना की।
उघर अर्जुन राजकुमार उत्तर से कह रहा था- "उत्तर सामने की शत्रु सेना मे दुर्योधन का रथ दिखाई नहीं दे रहा है। अभी अभी वह कही गुम होगया। कवच पहने जो खड़े है वे तो भीष्म पितामह है, लेकिन दुर्योधन कहाँ चला गया। इन महाथियो की ओर से हट कर तुम रथ को उस ओर ले चलो जहा दुर्योधन हो।"
दुर्योधन भाग रहा होगा, भागता है तो भागने दो। आप को तो नौयो से मतन्न ।'उत्तर वोला।
"मुभ भय है कि कही दुर्योधन गोगो को लेकर हस्तिना पुर पोपोर न भाग रहा हो।"-अर्जुन ने उत्तर दिया।
उत्तर की समझ में बात आगई और उसने रथ उसी ओर हाम, दिम जिधर में दुर्योधन वापस जा रहा था। जागे बात