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________________ कौरवो के वस्त्र हरण मुख्य योद्धा तक भयभीत है, कांप रहे हैं जब कि उन्हे दिल खोल कर लड़ना चाहिए। आप लोग यही रट लगा रहे है कि सामने जो न्थ आ रहा है उस पर धनुष ताने अर्जुन बैठा है। पर वहां अर्जुन के स्थान पर परशुराम भी हो तो हमे क्या डर है ? मैं तो अकेला ही उसका सामना करूगा और-यापको उस दिन जो वचन. दिया था उसे आज पूर्ण करके दिखाऊगा 1...सारी कौरव सेना और उस के सभी मेना नायक भले ही खड़े देखते रहे, चाहे गायो को भग़ा ले जायें, मै अन्त तक इटा रहूगा और यदि - वह. अर्जुन ही है तो अकेला ही उम से निबट ल्या।" -- - . कर्ण को यो दम भरते देख कर कृपाचार्य भेल्ली उठे। बोले- "कर्ण ! मूर्खता की बात न करी। हम मव को मिल कर अर्जुन का मुकाबला करना होगा, उसे चारों ओर से घेर लेना होगा। नहीं तो हमारे प्राणो की खैर नहीं। अर्जुन को शक्ति को मैं अच्छी प्रकार जानता हूँ। तुम अकेले ही उसके सामने जाने का दुस्माहस मत कर बैठना।" कर्ण को यह बात अपने गर्व तथा मान पर आघात प्रतीत हुई उसने चिढ कर कहा-"प्राचार्य जी तो अर्जुन की प्रगसा करते ही नहीं थकते। इन्हे अर्जुन की शक्ति बढा चढा कर दिग्बाने की आदत सी होगई है। न जाने उनको यह बात भय के कारण है अयवा अर्जुन के साथ अधिक प्रेम होने के कारण है। जो.हा. जो डरपोक है अथवा केवल उदर पूर्ति के लिए ही दुर्याधन के याश्रित है वे भले ही हाथ पर हाथ धरे खडे है न करे युद्ध या वापिस लौट जाय। में प्रकेला. हो इटा रहगा। जो शत्र को प्रगसा करते हैं या उमके भय वे मारे होवा हवास वो रहे है भला उनका यहा क्या काम .।" ., जब कर्ण ने प्राचार्य पर उम प्रसार अभियोग लगाया, सौर नाना मारा ना उनके भान अवस्थामा ने नहा गया। मन भना का पाहा--"कर्ण। अभी ता गाए ने करम हस्तिनापुर महा पहुंचे हैं। किरा तो तुम ने अनी नर चूछ नहीं और टीम 15 नो निणभरही। हम भने हा क्षत्रिर न हो, माप
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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