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________________ *उन्नीसवां परिच्छेद* ...... ********** ** कौरवों के वस्त्र हरण 444444444 अर्जुन का रथ जब धीर-गभीर घोष करता हुी आगे वा तो धरती हिलने लगी। गाण्डीव की टंकार सुनकर और अर्जुन का मुकावले पर आना जानकर कौरव वीरो का कलेजा कांप उठा। - उस समय द्रोणाचर्य बोले , "सेना की व्यूह रचना सुव्यवस्-ि थत ढेग पर कर लेनी होगी। इकट्ठे होकर सावधानी मे लडना मालूम होता है सामने अर्जुन आगया है जिसके सामने माना जान कर ही हमारे सैनिक भयभीत होगए है।" प्राचार्य की गका और घबराहट दुर्योधन को “न सुहाई। वह कर्ण मे बोला-"पाण्डवो को अपनी शर्त के अनुसार १२ वर्ष बनवास और एक वर्ष अनात वास में व्यतीत करना था। परन्तु अभी तेहरवा वर्ष पूरो नही हया और अर्जुन प्रकट हो गया 1 हमार तो भाग्य ग्वुल गए। प्राचार्य को तो चाहिए कि वे अानन्द मनाव पर वे नो भय विह्वल हो गए है। बात यह है कि पाण्डवो 'का स्वभाव ही ऐसा होता है। उनकी चतुरता तो दूसगे के दोप निका लने में ही दिखाई पटती है। अच्छा यही होगा कि इन्हें पार.. कर हम आगे बने और म्वय सेना का मचालन करे।" वर्ण तो ठग दुर्योधन का धनिष्ट मित्र। उसकी हा महो मिनाना हा बोना-"विचिय बात है कि मेना के नायक तथा
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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