________________
बृहन्नला रण योद्धा के रूप मे
.२३३
से उतार लाग्यो ।”
"क्यो ?"
"उस में कुछ हथियार बधे है ।"
"नही, इस वृक्ष पर तो लोग कहते है, किसी बुढिया की लाश टगी है। मैं नही चढूंगा ।"
:
"राजकुमार । तुम क्षत्रिय कुल में जन्म लेकर भी इतने डरपोक क्यो हो ? वृक्ष पर चढ जाओ और देखो तो सही वह लाश है, श्रथवा शस्त्रो की गठरी । "
1...
" माना कि उस मे शस्त्र ही है, तो भी रथ मे किन शस्त्रो की कमी है ? जो मुझे बेकार वृक्ष पर चढाते हो ।"
of
" तुम नही जानते राजकुमार ।
रथ के अस्त्र शस्त्र मेरे काम के नही । वृक्ष पर टगी गठरी मे ही मेरे काम के अस्त्र शस्त्र हैं । तुम चढो भी ।"
"आखिर उस गठरी में ऐसे कौन से अस्त्र शस्त्र है जिन के विना तुम्हारा काम न चलेगा ।"
.
८
मैं जानता हू कि उस गठरी मे पाडवो के अस्त्र शस्त्र है ।"
यह बात और भी आश्चर्य जनक थी, उत्तर के लिए। उस ने कहा - "तुम तो ऐसी पहेलिया बुझा रहे हो कि अपनी तो समझ मे खाक नही प्राता ।"
---
बृहन्नला ने एक वार आखें तरेर कर उसकी ओर देखा और कहीं -- "रांजकुमार ! तुम इतने कायर होगे, मुझे स्वप्न मे भी धाना नही थी ।"
१
लाचार होकर उत्तर को उस वृक्ष पर चढना पडा । उन पर जो गठरी थी, उसे सूत्र देखभाल के पश्चात उतारा और मुह बनाते ए नीचे उतर ग्राया । बृहन्नला ने ज्योही गठरी खोली उसमे से सूर्य की भानि जगमगाने वाले दिव्यास्त्र निकले ।